अजा एकादशी


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Aja Ekadashi 2020: सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र से जुड़ी है अजा एकादशी की व्रत कथा

अजा एकादशी भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है, इसलिए इस एकादशी पर व्रत रखने से भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है। ये अन्नदा एकादशी के नाम से भी प्रचलित है।

अजा एकादशी व्रत एवं पूजा विधि

  • एकादशी की सुबह जल्दी उठ कर स्नान और धयान करे।
  • अब भगवान विष्णु के सामने घी का एक दिया जलाएं और उनकी पूजा फल और फूलों से करें।
  • पूजा के बाद विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
  • दिन में निराहार एवं निर्जल व्रत का पालन करें।
  • पूजा करने के बाद विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
  • दिन में उपवास और निर्जल रहकर इसका पालन करें।
  • इस उपवास में रात्रि जागरण करें।
  • द्वादशी तिथि को सुबह ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान दें।
  • फिर खुद भोजन करें।

अजा एकादशी का महत्व

हिंदू धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, यह माना जाता है कि जो भक्त रात भर जागकर इस व्रत को विधि-विधान से करते हैं, उनके सभी पाप ख़त्म हो जाते हैं और अंत में उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, बस एकादशी की कहानी सुनने से, भक्तों को अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल मिलता है।

अजा एकादशी व्रत कथा

कहा जाता है कि राजा हरिश्चंद्र अपनी ईमानदारी और सय्तेवचन के कारण जाने जाते थे। एक बार देवताओं ने उनकी परीक्षा लेने इरादा किया। राजा ने अपने सपने में देखा कि उन्होंने अपना राजपाठ ऋषि विश्वामित्र को दान कर दिया है। जब अगले दिन राजा हरिश्चंद्र ने अपना सारा राज्य विश्वामित्र को सौपा और जब वो वह से जाने लगे तो विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र को दक्षिणा के रूप में 500 स्वर्ण मुद्राओं का दान करने को कहा। राजा ने उससे कहा कि पांच सौ क्या है, तुम्हें जितने चाहे सोने के सिक्के लेलो । विश्वामित्र इस पर हंसते हैं और राजा को याद दिलाते हैं कि राजपाट के साथ, उन्होंने राज्य के खजाने को भी दान कर दिया है और दान की गई वस्तु को फिर से दान नहीं किया जाता है। राजा ने अपनी पत्नी और बेटे को सोने की मुद्राएँ प्राप्त करने के लिए बेच दिया, लेकिन भी वे पाँच सौ मुद्राये नहीं जोड़ सके। राजा हरिश्चंद्र ने भी खुद को बेच दिया और सारी स्वर्ण मुद्रा विश्वामित्र को दान कर दी। जहाँ राजा हरिश्चंद्र ने खुद को बेचा था वह श्मशान का चांडाल था। चांडाल ने राजा हरिश्चंद्र को श्मशान घाट में दाह संस्कार के लिए कर जमा करने का काम दिया।

एक दिन राजा हरिश्चंद्र ने एकादशी का व्रत रखा। आधी रात थी और राजा श्मशान घाट की रखवाली कर रहे थे। यह बहुत अंधेरा था, उसी समय एक असहाय और गरीब महिला अपने बेटे के शव को हाथ में लेकर रोती हुई वहां आई। रजा ने देखा की वो तो उनकी पत्नी थी और मृतक उनका पुत्र था। राजा हरिश्चंद्र ने अपने धर्म का पालन करते हुए अपनी पत्नी से भी बेटे का दाह संस्कार करने के लिए कर माँगा । पत्नी के पास कर चुकाने के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए उसने अपनी साड़ी का आधा हिस्सा फाड़कर राजा का दे दिया। उसी समय भगवान प्रकट हुए और उन्होंने राजा से कहा, “हे हरिश्चंद्र, इस दुनिया में तुमने जीवन में सत्य को धारण करने का सर्वोच्च आदर्श स्थापित किया है। आपका कर्तव्य महान है, आप इतिहास में अमर रहेंगे। "तभी राजा का पुत्र रोहिताश जीवित हो गया। भगवान की अनुमति के साथ, विश्वामित्र ने हरिश्चंद्र का राज्य भी उसे वापस कर दिया।