आमलकी एकादशी को आमलक्य एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। आमलकी शब्द का अर्थ है आंवला, जिसे आयुर्वेद और हिन्दू धर्म दोनों में ही उत्तम बताया गया है। पद्म पुराण के मुताबिक आंवले का पेड़ प्रभु विष्णु जी को बहुत प्रिय होता है। आंवले के पेड़ में श्री हरि एवं माता लक्ष्मी जी का निवास करते है। आंवले के पेड़ में प्रभु विष्णु जी का निवास होने के कारण आवले के पेड़ के नीचे भगवान का पूजन किया जाता है, यही आमलकी एकादशी कहलाता है। आमलकी एकादशी के दिन आंवला पूजन, आंवले के जल से स्नान, आंवले का भोजन, आंवले का उबटन और आंवले का दान करते है।
आमलकी एकादशी व्रत की पूजा विधि
इस दिन में आंवले का बहुत महत्व है। आमलकी एकादशी के दिन पूजा से लेकर भोजन तक हर काम में आंवले का प्रयोग होता है। आमलकी एकादशी की पूजा विधि निम्नलिखित है:
- आमलकी एकादशी के दिन प्रातःकाल उठकर प्रभु विष्णु जी का ध्यान कर अपने व्रत का पर्ण करना चाहिए।
- अपने व्रत का पर्ण लेने के पश्चात् स्नान आदि पूर्ण कर प्रभु विष्णु जी की पूजा करनी चाहिए। घी का दीपक जलाकर श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
- पूजा पूर्ण होने के पश्चात् आंवले के पेड़ के नीचे नवरत्न युक्त कलश स्थापित करे। यदि आंवले का पेड़ उपलब्ध नहीं हो तो आंवले का फल प्रभु विष्णु जी को प्रसाद के रूप में चढ़ाये।
- आंवले के पेड़ का धूप, दीप, रोली, चंदन, फुल, अक्षत आदि से पूजा कर उसके नीचे किसी निर्धन व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराए।
- अगले दिन यानि द्वादशी को प्रातःकाल स्नान कर प्रभु विष्णु जी की पूजा के बाद निर्धन व्यक्ति या ब्राह्मण को कलश, कपड़े और आंवला आदि का दान करे। उसके बाद भोजन ग्रहण कर व्रत पूर्ण करें।
आमलकी एकादशी व्रत का महत्त्व
पद्म पुराण के मुताबिक इस दिन उपवास करने से सैंकड़ों तीर्थ स्थानों के दर्शन के समान पुण्य मिलता है। सभी यज्ञों के समान फल देने वाले इस व्रत को करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। जो व्यक्ति आमलकी एकादशी का उपवास नहीं करते हैं वह भी इस एकादशी के दिन प्रभु विष्णु जी को आंवला चढ़ाएं और स्वयं भी खाएं। हिंदू शास्त्रों के अंतर्गत इस दिन आंवले का सेवन करना विशेष लाभकारी माना गया है।
पौराणिक कथा
चित्रसेन नामक राजा प्राचीन काल में राज्य करता था। चित्रसेन के राज्य में एकादशी के उपवास का विशेष महत्व था और राज्य की सभी प्रजाजन यह उपवास करते थे। वहीं राजा के आमलकी एकादशी के प्रति विशेष श्रद्धा-भाव थे।
एक दिन राजा शिकार करते-करते जंगल में बहुत दूर निकल गया। उसी समय कुछ जंगली और पहाड़ी डाकुओं ने राजा को जंगल में घेर लिया। जिसके बाद डाकुओं ने अपने शस्त्रों से राजा पर हमला कर दिया। मगर देव कृपा से राजा पर जो भी शस्त्र चलाए जाते वो फूलो में परिवर्तित हो जाते।
डाकुओं की संख्या अधिक होने के कारण राजा स्तब्ध होकर वही धरती पर गिर गया। उसी समय राजा के शरीर से दिव्य शक्ति प्रकाशित हुई और सभी डाकुओं को मारकर अदृश्य हो गई। जब राजा होश में आया तो, राजा ने सभी डाकुओं का मरा हुआ पाया। यह देख कर राजा को ताज्जुब हुआ कि इन सभी डाकुओं को किसने मारा? उसी समय एक आकाशवाणी हुई- है राजन! ये सब राक्षस तुम्हारे आमलकी एकादशी का उपवास करने के प्रभाव से मारे गए हैं। तुम्हारे शरीर से उत्पन्न आमलकी एकादशी की वैष्णवी शक्ति ने इन सभी डाकुओं का संहार किया है। इन्हें मारकर वह पुन: तुम्हारे शरीर में समा गई।
यह सब सुनकर राजा अत्यधिक प्रसन्न हुआ और जंगल से वापस लौटकर अपने राज्य में सभी को एकादशी का महत्व बताया।