आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इसे रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, चंद्रमा पूरे वर्ष में केवल इस दिन सोलह कलाओं का होता है और इससे निकलने वाली किरणों को अमृत के सामान माना जाता है। उत्तर और मध्य भारत में, शरद पूर्णिमा की रात, दूध की खीर बनायीं जाती है और चंद्रमा की रोशनी में रखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब चंद्रमा की किरणें खीर में पड़ती हैं, तो यह कई गुना गुणकारी और फायदेमंद हो जाती है। इस व्रत को कोजावर व्रत माना जाता है, साथ ही इसे कौमुदी व्रत भी कहा जाता है।
आश्विन पूर्णिमा व्रत और पूजा विधि
शरद पूर्णिमा पर मंदिरों में विशेष सेवा-पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन किये जाने वाले धार्मिक कर्म इस प्रकार हैं-
- सुबह जल्दी उठ कर उपवास की प्रतिज्ञा ले और पवित्र नदी, जलाशय या कुंड में स्नान करें।
- आराध्य देव को सुंदर वस्त्र, आभूषण पहनाएं। आह्वान, आसन, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, सुपारी और दक्षिणा आदि से पूजा करें।
- रात के समय, गाय के दूध से बनी खीर में घी और चीनी मिलाकर आधी रात के समय भगवान को भोग लगाएँ।
- रात्रि में, यदि चंद्रमा आकाश के बीच में स्थित है, तो चंद्र देव की पूजा करें और खीर का नेवैद्य अर्पण करें।
- रात को खीर से भरा बर्तन चांदनी में रखकर दूसरे दिन उसका भोजन करें और सबको प्रसाद के रूप में वितरित करें।
- पूर्णिमा पर व्रत करने के बाद व्यक्ति को कथा सुननी चाहिए। कथा से पहले एक लोटे में जल और गिलास में गेहूं रखें, पत्ते के बर्तन में रोली व चावल रखकर कलश की वंदना करें और दक्षिणा चढ़ाएँ।
- इस दिन भगवान शिव-पार्वती और भगवान कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है।
शरद पूर्णिमा का महत्व
शरद पूर्णिमा पर ही स्नान और उपवास शुरू हो जाते है। माताएं अपने बच्चों की भलाई के लिए देवी-देवताओं की पूजा करती हैं। इस दिन, चंद्रमा पृथ्वी के बहुत करीब आता है। शरद ऋतु में मौसम बहुत साफ होता है। इस समय आसमान में न तो बादल होते और न ही धूल। शरद पूर्णिमा की रात को शरीर पर पड़ने वाली चंद्र किरणों को बहुत शुभ माना जाता है।