गुरु-पूर्णिमा/आषाढ़ पूर्णिमा व्रत


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Guru Purnima 2021: गुरु पूर्णिमा आज, जानिए इस पर्व का महत्व, मुहूर्त और पूजा विधि - आषाढ़ पूर्णिमा का महत्व, इसलिए कहते हैं इसे गुरु पूर्णिमा,

आइए जानते हैं कि 2021 में गुरु पूर्णिमा कब है और तारीख और मुहूर्त क्या होगी। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहा जाता है। इस दिन गुरु की पूजा की जाती है। सरल भाषा में, गुरु वह व्यक्ति है जो ज्ञान का सागर होते है और हमें अंधकार से हटा कर सीधे रस्ते पर ले जाता है। यह त्योहार पूरे भारत में बड़ी निष्ठा के साथ मनाया जाता है।

गुरु पूर्णिमा मुहूर्त

  1. गुरु पूजा और श्री व्यास पूजा के लिए पूर्णिमा तिथि को सूर्योदय के बाद तीन मुहूर्त तक व्याप्त होना जरूरी है।
  2. यदि पूर्णिमा तिथि तीन मुहूर्त से कम है, तो यह त्यौहार पहले दिन मनाया जाता है।

गुरु पूजन विधि

  1. इस दिन सुबह जल्दी स्नान व् पूजा आदि नित्यकर्मों को करके उत्तम और साफ़ शुथ्रे कपडे पैनने चाहिए।
  2. उसके बाद व्यास जी की मूर्ति को सुगंधित फूल या माला अर्पित करके अपने गुरु के पास जाना चाहिए। उन्हें अत्यधिक सुसज्जित आसन पर बैठकर पुष्पमाला पहनानी चाहिए और उनका आशीर्वाद लेना चाहिए।
  3. इसके बाद वस्त्र, फल, फूल और माला अर्पित करके जहां तक संभव हो कुछ दक्षिणा धन के रूप में भेंट करनी चाहिए।

गुरु पूर्णिमा महत्व

महर्षि वेद व्यास जी, जिन्होंने पौराणिक काल की महान हस्तियों की रचना की जैसे महाभारत, ब्रह्मसूत्र, श्रीमद्भागवत और अट्ठारह पुराण, ऐसा कहा जाता है की उनका जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को हुआ था।

वेदव्यास ऋषि पराशर के बेटे थे। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, महर्षि व्यास तीनों काल के शास्त्री थे। उनकी दिव्य दृष्टि से देखकर, उन्हें पता था कि कलयुग में धर्म के प्रति रुचि कम हो जाएगी। धर्म में रुचि न होने के कारण, मनुष्य ईश्वर में विश्वास कम करने लगता है, जिस कारण व्यक्ति कर्तव्य से रहित रहता है । और कम आयु वाला हो जायेगा। एक बड़े और पूर्ण वेद का अध्ययन करना उसके लिए आसान नहीं होगा। इसलिए महर्षि व्यास ने वेदों को चार भागों में विभाजित किया ताकि अल्प बुद्धि और अल्प स्मृति शक्ति वाले लोग भी वेदों का अध्ययन करके लाभान्वित हो सकें।

व्यास जी ने वेदों को अलग-अलग खंडों में विभाजित करने के बाद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का नाम दिया। वेदों के ऐसे विभाजन की वजह से उन्हें वेद व्यास के नाम से जाना गया। उन्होंने अपने विभाजन किये वेदों का ज्ञान अपने प्रिय शिष्यों वैशम्पायन, सुमन्तुमुनि, पाल और जैमिन को दिया।

वेद व्यास जी ने पांचवें वेद के रूप में पुराणों की रचना की जिसमें वेदों के ज्ञान को रोचक कथा-कहानियों के रूप में समझाया गया है, क्योंकि वेदों का ज्ञान अत्यंत रहस्यमय और कठिन था। उन्होंने अपने शिष्य रोम हर्षन को पुराणों का ज्ञान दिया।

व्यास जी के शिष्यों ने अपनी बुद्धि के अनुसार उन वेदों को कई शाखाओं और उप-शाखाओं में विभाजित किया। महर्षि व्यास ने भी महाभारत की रचना की थी। वे हमारे आदि-गुरु माने जाते हैं। गुरु पूर्णिमा का यह प्रसिद्ध पर्व व्यास जी की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इसलिए, इस त्योहार को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। हमें व्यास जी के हिस्से के रूप में अपने गुरुओं की पूजा करनी चाहिए।

  1. इस दिन सिर्फ गुरु ही नहीं, बल्कि परिवार में जो भी बड़ा हो, यानी माता-पिता, भाई-बहन आदि को भी गुरु की अनुरूप माना जाना चाहिए।
  2. शिक्षक की वजह से ही विद्यार्थी को ज्ञान का पता चलता है। शिक्षक के करण ही विद्यार्थी के हृदय का अज्ञान और अन्धकार दूर हो जाता है।
  3. गुरु का आशीर्वाद कल्याणकारी, ज्ञानवर्धक और मंगल करने वाला होता है। दुनिया की सारी विद्याएं गुरु की कृपा से मिलती है।
  4. गुरु से मंत्र का ज्ञान लेने के लिए भी यह दिन श्रेष्ठ है।
  5. इस दिन जितना हो सके गुरुओं की सेवा करना बहुत जरूरी है।
  6. इसलिए, इस त्योहार को भक्ति के साथ मनाया जाना चाहिए।

हमें उम्मीद है कि यह गुरु पूर्णिमा आपके लिए बहुत अच्छी रहे और आप सभी को गुरु पूर्णिमा की बहुत सारी शुभकामनाएं!