आइए जानते हैं कि 2021 में हरतालिका तीज कब है व हरतालिका तीज की तारीख व मुहूर्त क्या रहगा। हरतालिका तीज व्रत हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला एक मुख्य व्रत है। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया को कब्र पर उत्सव मनाया जाता है। दरअसल, भाद्रपद के शुक्ल तृतीया के हस्त नक्षत्र में भगवान शिव जी और देवी पार्वती की पूजा का विशेष महत्व माना है। कुवारी और सौभयवती महिलाओं द्वारा हरतालिका तीज का व्रत किया जाता है। विधवा महिलाएं भी इस व्रत का पालन कर सकती हैं। हरतालिका तीज व्रत को निराहार और निर्जला रहकर किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शिव जी को अपने पति के रूप में पाने के लिए किया था। माना जाता है कि तीज का व्रत महिलाओं के लिए सौभाग्य लेकर आता है।
हरतालिका तीज व्रत के नियम
- तीज व्रत में पानी का सेवन नहीं किया जाता है। व्रत के अगले दिन जल ग्रहण करने का नियम है।
- हरतालिका तीज का व्रत करने पर इसे छोड़ा नहीं जा सकता है। हर साल इस व्रत को विधि-विधान से करना चाहिए।
- तीज के दिन रात्रि जागरण करना चाहिए और साथ ही भजन-कीर्तन भी करना चाहिए।
- हर तालिका का व्रत कुंवारी लड़कियों, शादी शुदा महिलाओं द्वारा किया जाता है। विधवा महिलाओं को इस व्रत को रखने के लिए शास्त्रों में भी अनुमति है।
हरतालिका तीज व्रत पूजा विधि
हरतालिका तीज पर माता पार्वती और भगवान शिव जी की पूजा विधि-विधान से की जाती है। इस व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है ।
- हरतालिका तीज प्रदोषकाल के दौरान की जाती है। सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्तों को प्रदोषकाल कहा जाता है। यह दिन और रात के मिलन का समय है।
- भगवान शिव, देवी पार्वती और भगवान गणेश जी की अपने हातो से बालू, रेत या काली मिट्टी से बनाये और उनकी पूजा करें।
- पूजा स्थल को फूलों से सजाएं और एक चौकी रखें और उस पर केले के पत्ते बीचा कर उसपर भगवान शंकर, देवी पार्वती और भगवान गणेश की मूर्तियां स्थापित करें।
- इसके बाद देवताओं का आह्वान करते हुए भगवान शिव, देवी पार्वती और भगवान गणेश का षोडशोपचार पूजन करें।
- इस व्रत की मुख्य परंपरा है की सुहाग की पेटी में सुहाग की सभी वस्तुओं को रखकर देवी पार्वती को अर्पित करना चाहिए है।
- इसमें शिव को धोती और कपड़ा चढ़ाया जाता है। सास के चरण स्पर्श करने के बाद इस स्पर्श सामग्री को ब्राह्मणी और ब्राह्मण को दान कर देना चाहिए।
- पूजा के बाद कथा सुनें और रात्रि जागरण करें। आरती के बाद सुबह माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाएं और ककड़ी-हलवा चढ़ाकर व्रत खोलें।
हरतालिका तीज व्रत का पौराणिक महत्व
हरतालिका तीज व्रत भगवान शिव और देवी पार्वती के पुनर्मिलन के मौके पर मनाया जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, देवी पार्वती ने भगवान शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की। माता पार्वती ने हिमालय पर गंगा नदी के तट पर भूखे-प्यासे रहकर तपस्या की। माता पार्वती की इस स्थिति को देखकर उनके पिता हिमालय बहुत उदास हुए। एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के विवाह का प्रस्ताव लेकर आए लेकिन जब माता पार्वती को इस बात का पता चला, तो उन्होंने विलाप करना शुरू कर दिया। सखी द्वारा पूछे जाने पर उसने बताया कि, वह भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या कर रही है। इसके बाद, अपने सखी की बात मान कर, माता पार्वती जंगल में चली गईं और भगवान शिव की पूजा में लीन हो गईं। इसी बीच, भाद्रपद में शुक्ल पक्ष तृतीया के दिन, माता पार्वती ने हस्त नक्षत्र में रेत से एक शिवलिंग का निर्माण किया और शिव जी की पूजा में मग्न होकर रात्रि जागरण किया। माता पार्वती के कठोर तपस्या को देखकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और देवी पार्वती की इच्छा के अनुसार उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
तब से, एक अच्छे पति की प्राप्ति के लिए और अपने पति की लंबी उम्र के लिए, कुंवारी लड़कियों और सौभाग्यवती महिलाओं ने हरतालिका तीज का उपवास रखती है। और भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करके आशीर्वाद प्राप्त किया।