होलिका दहन


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होलिका दहन 2021 की तारीख व मुहूर्त

इस लेख में हम जानेंगे कि 2021 में होलिका दहन तिथि व मुहूर्त कब है। होलिका दहन, होली पर्व से पूर्व, फाल्गुन माह की पूर्णिमा को मनाते है। होलिका दहन के अगले दिन रंगों से खेलने की प्रथा है जिसे धुलंडी, धुलेंडी और धूलि आदि नामों से जाना जाता है। होली का पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक के रूप में मनाई जाती है।

होलिका दहन का शास्त्रोक्त नियम

फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक माना जाता है, जिसमें शुभ कामों को करने की मनाही होती हैं। पूर्णिमा वाले दिन होलिका का दहन किया जाता है। उसके लिए विशेष दो नियमो को ध्यान में रखना चाहिए -

  1. प्रथम, उस दिन “भद्रा” न हो। भद्रा को विष्टि करण भी कहा जाता है, जो कि 11 करणों में से एक है। एक करण, तिथि के आधे हिस्से के समान होता है।
  2. द्वितीय, पूर्णिमा प्रदोषकाल-व्यापिनी होनी चाहिए अर्थात उस दिन सूर्य के अस्त होने के बाद के तीन मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि होनी चाहिए।

होलिका दहन के अगले दिन पुरे हर्ष और उल्लास के साथ रंग खेलने की परम्परा है और रंग-गुलाल आदि एक-दूसरे को लगाकर व गले मिलकर होली के इस त्यौहार को बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है।

होलिका दहन की पौराणिक कथा

हिंदू शास्त्रों के अंतगर्त दानवराज हिरण्यकश्यप ने जब देखा की स्वयं उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु जी के सिवाय अन्य को नहीं भजता, तो हिरण्यकश्यप क्रोधित हो उठा और उसने अपनी बहन होलिका को जिसे अग्नि में ना जलने का वरदान प्राप्त था उसे आदेश दिया की वह प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए। परन्तु हुआ उसका उल्टा - होलिका जलकर राख हो गयी और प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ। इसी की याद में इस दिन होलिका दहन करने की प्रथा है। होली का त्यौहार संदेश देता है कि इसी प्रकार ईश्वर अपने सभी भक्तों की रक्षा के लिए हमेशा मौजूद रहता है।

होलिका दहन का इतिहास

होली के पर्व का उल्लेख बहुत पहले के समय से हमें देखने को मिल जाता है। प्राचीन काल के विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी में 16वीं शताब्दी का एक चित्र मिला है जिसमें की होली के त्यौहार को उकेरा गया है। इसी तरह विंध्य पर्वतों के पास स्थित रामगढ़ में मिले एक ईसा से 300 वर्ष पुराने अभिलेख में भी होली के पर्व का वर्णन मिलता है। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण जी ने पूतना नामक राक्षसी का अंत किया था। इसी ख़ुशी में गोपियों ने भगवान श्री कृष्ण जी के साथ होली खेली थी।