जया एकादशी वाले दिन प्रभु विष्णु जी की पूजा-आराधना की जाती है। पूजन में प्रभु विष्णु जी को जल, फुल, रोली, अक्षत तथा विशिष्ट सुगंधित चीजें अर्पित करनी चाहिए। इस दिन का व्रत बहुत ही पुण्यदायी वाला होता है। माना जाता है कि जया एकादशी के दिन श्रद्धापूर्वक उपवास करने वाले व्यक्ति को भूत-प्रेत, पिशाच जैसी योनियों में जाने का भय नहीं रहता है।
जया एकादशी व्रत पूजा विधि
जया एकादशी के दिन प्रभु विष्णु जी की पूजा और आराधना की जाती है। इस व्रत की पूजा विधि निम्नलिखित है:
- जया एकादशी व्रत के लिए वर्ती को उपवास से पहले दशमी के दिन एक ही समय सात्विक भोजन ग्रहण करना होता है। उपासक को ब्रह्मचार्य और संयमित का भी पालन करना होता है।
- प्रात:काल स्नान के पश्चात् उपवास का पर्ण लेकर फल, दीप, धूप, और पंचामृत आदि अर्पित करके प्रभु विष्णु जी के श्री कृष्ण अवतार की पूजा करनी चाहिए।
- रात्रि के समय में जागरण कर श्री हरि के नाम के भजन करते रहना चाहिए।
- द्वादशी के दिन किसी निर्धन जरूरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर उन्हें दान-दक्षिणा देकर अपने व्रत को पूर्ण करना चाहिये।
जया एकादशी व्रत की पौराणिक कथा
हिंदू मान्यताओं के अनुसार श्री कृष्ण जी ने धर्मराज युधिष्ठिर के निवेदन पर जया एकादशी व्रत की कथा और महत्व का वर्णन किया। जया एकादशी व्रत की कथा के अनुसार:
भगवान इंद्रदेव की सभा में उत्सव चल रहा था। देवगण, दिव्य पुरुष, संत सभी उत्सव में शामिल थे। उत्सव के समय गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं और गंधर्व गीत गा रहे थे। जिनमे एक माल्यवान नाम का गंधर्व भी था जो बेहद सुरीला गाता था। जितनी सुरीली उसकी आवाज़ थी उतना ही सुंदर उसका रूप भी था। उधर गंधर्व कन्याओं में एक सुंदर पुष्यवती नाम की गंधर्व नृत्यांगना भी थी। माल्यवान और पुष्यवती एक-दूसरे को देखकर अपना सुध-बुध खो बैठते हैं और अपनी लय और ताल से भटक जाते हैं। उनके इस कार्य से भगवान इंद्रदेव नाराज़ हो जाते हैं और उन्हें उसी क्षण श्राप देते हैं कि स्वर्ग से वंचित होकर मृत्यु लोक में पिशाचों सा जीवन व्यतीत करोगे।
उन्हें मिले श्राप के कारण वे दोनों प्रेत योनि में चले गए और दुख भोगने लगे। पिशाची जीवन अत्यधिक कष्टदायक था। वे दोनों बहुत दुखी थे। एक समय माघ महीने में शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन था। पूरे दिन में उन दोनों ने बस एक बार ही फल ग्रहण किया था और रात में भगवान से प्रार्थना कर वो अपने किये पर पश्चाताप भी कर रहे थे। उसके बाद सुबह तक उन दोनों की मृत्यु हो गई थी। अनजाने में ही सही लेकिन उन दोनों ने एकादशी का व्रत किया था और एकादशी व्रत के प्रभाव से उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई और वे दोनों पुन: स्वर्ग लोक चले गए।