ज्येष्ठ अमावस्या


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ज्येष्ठ अमावस्या आज, जानें मुहूर्त, पूजा विधि और इस तिथि का महत्व : Jyeshtha Amavasya 2021

हिंदू धर्म में, अमावस्या के दिन दान-पुण्य और पितरों की शांति के लिए किये जाने वाले पिंडदान व तर्पण को शुभ माना जाता है। साथ ही ज्येष्ठ अमावस्या पर शनि जयंती भी मनाई जाती है, इस वजह से ज्येष्ठ अमावस्या का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। इस दिन शनिदेव की पूजा करने का विशेष महत्व है। सूर्य पुत्र शनि देव हिंदू ज्योतिष में नवग्रहों में से एक है। धीमी गति से चलने की वजह से उन्हें शनैश्चर भी कहा जाता है। शनि जयंती के साथ, उत्तर भारत में महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए इस दिन वट सावित्री व्रत भी रखती हैं।

ज्येष्ठ अमावस्या व्रत और धार्मिक कर्म

ज्येष्ठ अमावस्या पर दान, धर्म, पिंडदान के साथ-साथ शनि देव की पूजा और वट सावित्री व्रत भी रखा जाता है। इस दिन होने वाले धार्मिक अनुष्ठान इस प्रकार हैं-

  • इस दिन किसी नदी, जलाशय या कुंड आदि में प्रात: स्नान करके सूर्य देव को जल अर्पित करें और तिल को नदी के  बहते जल में छोड़ दे।
  • पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान अर्पित करें और गरीब मनुष्यों को दान-दक्षिणा दें।
  • शनि देव को काले तिल, कड़वा तेल, काले कपड़े और नीले पुष्प चढ़ाएं। शनि चालीसा का जाप करें।
  • वट सावित्री के उपवास का पालन करने वाली महिलाओं को इस दिन यम देवता की पूजा करनी चाहिए और यथाशक्ति दान-दक्षिणा देना चाहिए।

ज्येष्ठ अमावस्या और शनि जयंती का महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, शनिदेव का जन्म ज्येष्ठ अमावस्या के समय हुआ था, इसलिए ज्येष्ठ अमावस्या का हिन्दू धार्मिक महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। वैदिक ज्योतिष में, शनि देव सेवा और कर्म के कारक हैं, इसलिए उनकी कृपा पाने के लिए इस दिन विशेष रूप से पूजा अर्चना की जाती है। शनि देव न्याय के देवता हैं, उन्हें कलियुग का दंडाधिकारी और न्यायाधीश भी कहा गया है। शनि शत्रु को ही  नहीं बल्कि संसार के सभी जीवों को उनके कर्मों का फल प्रदान करते हैं।

शनि जन्म कथा

शनि देव के जन्म से संबंधित एक पौराणिक कथा बहुत लोकप्रिय है। इस कथन के अनुसार, शनि देव सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं। सूर्य देव का विवाह संज्ञा से हुआ था और मनु, यम और यमुना के रूप में उनके तीन बच्चे थे। शादी के बाद कुछ वर्षों तक, संज्ञा सूर्य देव के साथ थीं, लेकिन लंबे समय तक सूर्य देव के तेज को सहन नहीं कर सकीं। इसलिए उन्होंने अपनी छाया को सूर्य देव की सेवा के लिए छोड़ दिया और कुछ समय बाद छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ। हालांकि, जब सूर्य देव को पता चला कि छाया वास्तव में संज्ञा नहीं थी, तो वे क्रोधित हो गए और शनि देव को अपना पुत्र मानने से मना कर दिया। तभी से शनि और सूर्य पिता-पुत्र होने के बावजूद एक-दूसरे से नफरत करने लगे।

वट सावित्री व्रत

यह सौभाग्यशाली महिलाओं का मुख्य त्योहार है, हालांकि यह व्रत कुंवारी और विधवा महिलाओं द्वारा भी किया जा सकता है। ज्येष्ठ अमावस्या पर इस उपवास को किया जाता है। इस दिन महिलाएं वट यानी बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। महिलाएं अखंड सौभाग्यशाली रहने की शुभकामना के साथ इस उपवास का पालन करती हैं। इस दिन यमराज के साथ सत्यवान-सावित्री की भी पूजा की जाती है।