माँ ब्रह्मचारिणी पूजा


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माँ ब्रह्मचारिणी - नवरात्रि दूसरा दिन 2021 : Maa Brahmacharini - Navratri Second Day 2021

नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। देवी के इस रूप को देवी पार्वती का अविवाहित रूप माना जाता है। ब्रह्मचारिणी एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है ब्रह्म के समान आचरण। उनकी कठोर तपस्या के कारण उन्हें तपशचारिणी भी कहा जाता है।

माता ब्रह्मचारिणी का स्वरूप

माता ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्र में सुशोभित हैं, उनके दाहिने हाथ में जप माला और बाएं हाथ में कमण्डल है। देवी का रूप अत्यंत तेज और प्रज्जवलित है।  साथ ही देवी प्रेेम स्वरूप भी हैं।

पौराणिक मान्यताएँ

मान्यताओं के अनुसार, देवी पार्वती ने भगवान शिव से शादी करने की इच्छा व्यक्त की, जिसके बाद उनके माता-पिता उन्हें हतोत्साहित करने की कोशिश करने लगे। हालाँकि, इस सब के बावजूद, देवी ने भगवान कामदेव, कामुक गतिविधियों के स्वामी से मदद का अनुरोध किया। ऐसा कहा जाता है कि कामदेव ने शिव पर कामवासना का तीर छोड़ा और उस तीर ने शिव के ध्यान को विचलित कर दिया, जिससे देवता आग बबूला हो गए और खुद को जला दिया।

यह कहानी का अंत नहीं है। उसके बाद पार्वती शिव जी की तरह रहने लगीं। देवी पर्वत पर गईं और वहां उन्होंने कई वर्षों तक कठोर तपस्या की जिसके कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी नाम दिया गया। इस कठोर तपस्या से देवी ने भगवान शंकर जी का ध्यान आकर्षित किया। इसके बाद, भगवान शिव ने अपना रूप बदल लिया और पार्वती के पास गए और उनकी बुराई की, लेकिन देवी ने उनकी बात नहीं मानी। अंत में शिव जी ने अपना लिया और उनसे शादी कर ली।

ज्योतिषीय संदर्भ

ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार, देवी ब्रह्मचारिणी मंगल ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से मंगल ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं।

मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥

ध्यान मंत्र

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
जपमाला कमण्डलु धरा ब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालङ्कार भूषिताम्॥
परम वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोला पीन।
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

स्त्रोत

तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शङ्करप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥

कवच मंत्र

त्रिपुरा में हृदयम् पातु ललाटे पातु शङ्करभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥
पञ्चदशी कण्ठे पातु मध्यदेशे पातु महेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
अङ्ग प्रत्यङ्ग सतत पातु ब्रह्मचारिणी॥

उपरोक्त जानकारियों के साथ हम उम्मीद करते हैं कि नवरात्रि का दूसरा दिन आपके लिए अच्छा होगा और देवी ब्रह्मचारिणी की कृपा आपको प्राप्त होगी।