आइए इस लेख में जानते हैं कि 2021 में महाशिवरात्रि की तिथि और मुहूर्त कब है। महाशिवरात्रि हिंदू धर्म के सबसे बड़े पर्वों में से एक माना जाता है। दक्षिण भारतीय पंचांग (अमावस्यान्त पंचांग) के मुताबिक़ माघ महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का यह त्यौहार मनाया जाता है। वहीं उत्तर भारतीय पंचांग (पूर्णिमान्त पंचांग) के अनुसार फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को इस पर्व का आयोजन होता है। पूर्णिमान्त व अमावस्यान्त दोनों ही पंचांगों के अनुसार महाशिवरात्रि एक ही दिन पड़ती है, इसलिए अंग्रेज़ी कैलेंडर के अनुसार से महाशिवरात्रि की तिथि वही रहती है। इस दिन भगवान शिव के भक्त मंदिरों में शिवलिंग पर बेल-पत्र आदि चढ़ाकर पूजा, व्रत तथा रात्रि में जागरण करते हैं।
महाशिवरात्रि व्रत का शास्त्रोक्त नियम
महाशिवरात्रि व्रत कब और कैसे मनाया जाए, इसके लिए शास्त्रों के मुताबिक नियम तय किए गए हैं जो निम्नलिखित है-
- यदि चतुर्दशी पहले ही दिन निशीथव्यापिनी हो, तो उसी दिन महाशिवरात्रि मनाते हैं। रात्रि का 8वाँ मुहूर्त निशीथ काल कहा जाता है। अर्थात समान शब्दों में कहे तो जब चतुर्दशी तिथि आरम्भ हो और रात्रि का 8वाँ मुहूर्त चतुर्दशी तिथि में ही पड़ रहा हो, तो उसी दिन शिवरात्रि का पर्व मनाना चाहिए।
- यदि चतुर्दशी दूसरे दिन निशीथकाल के पहले हिस्से को छुए और पहले दिन पूरे निशीथ को परिपूर्ण करे, तो पहले दिन ही महाशिवरात्रि के पर्व का आयोजन किया जाता है।
- ऊपर दी गयी दोनों स्थितियों को अलावा बाक़ी प्रत्येक स्थिति में व्रत अगले दिन ही किया जाता है।
शिवरात्रि व्रत की पूजा-विधि
- मिट्टी के लोटे में दूध या पानी भरकर, ऊपर से आक-धतूरे के फूल, बेलपत्र चावल आदि डालकर “शिवलिंग” पर चढ़ाना चाहिए। यदि आस-पास कोई शिव मंदिर नहीं है, तो अपने घर में ही मिट्टी का शिवलिंग बनाकर उनका पूजन करे।
- भगवान शिव पुराण का पाठ और महामृत्युंजय मंत्र या भगवान शिव जी के पंचाक्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय का जाप इस दिन करना चाहिए और साथ ही महाशिवरात्रि वाले दिन रात्रि में जागरण का भी विधान है।
- शास्त्रीय विधि-विधान के मुताबिक शिवरात्रि का पूजन “निशीथ काल” में करना सर्वश्रेष्ठ और विशेष फलदायी रहता है। यद्यपि भक्त रात्रि के चारों प्रहरों में से अपनी इच्छा अनुसार यह पूजन कर सकते हैं।
ज्योतिष के दृष्टिकोण से शिवरात्रि पर्व
चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान शंकर अर्थात स्वयं भगवान शिव ही हैं। इसी कारण प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि के तौर पर मनाया जाता है। हिंदू धर्म में इस तिथि को विशेष शुभ बताया गया है। गणित ज्योतिष के आकलन के अनुसार से महाशिवरात्रि के समय सूर्य उत्तरायण हो चुके होते हैं और ऋतु में परिवर्तन भी चल रहा होता है। ज्योतिषो के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अपनी कमज़ोर स्थिति में होता हैं। चन्द्रमा को भगवान शिव जी ने अपने मस्तक पर धारण किया हुआ है - अतः भगवान शिवजी के पूजन से मनुष्य का चंद्र सबल होता है, जो मन का कारक है। सामान्य शब्दों में कहें तो भगवान शिव की पूजा करने से इच्छा-शक्ति को मज़बूत होती है और अन्तःकरण में अदम्य साहस व दृढ़ता का संचार करती है।
महाशिवरात्रि की पौराणिक कथा
शिवरात्रि को लेकर कई सारी कथाएं प्रसिद्ध हैं। मान्यता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए घनघोर तपस्या की थी। पौराणिक कथाओं के मुताबिक इसके फलस्वरूप फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को प्रभु शिव जी और माता पार्वती जी का विवाह संपन्न हुआ था। यही कारण है कि महाशिवरात्रि को विशेष महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है।
वहीं गरुड़ पुराण में शिवरात्रि के दिन के महत्व को लेकर एक अन्य कथा और कही गई है, जिसके अंतगर्त इस दिन एक निषादराज अपने कुत्ते के साथ शिकार खेलने गया लेकिन निषादराज को कोई शिकार नहीं मिला। निषादराज थककर भूख-प्यास से परेशान हो कर एक तालाब के किनारे गया, जहाँ पर एक बिल्व वृक्ष के नीचे भगवान शिव का शिवलिंग था। उसने अपने शरीर को आराम देने के लिए उसने कुछ बिल्व-पत्र तोड़े, जो उस पवित्र शिवलिंग पर भी गिर गए। उसने अपने पैरों को साफ़ करने के लिए उनपर तालाब का जल छिड़का, जिससे जल की कुछ बून्दें शिवलिंग पर भी जा गिरीं। ऐसा करते हुए उसका एक तीर नीचे जमीन पर गिर गया, तीर को उठाने के लिए वह शिवलिंग के सामने नीचे की ओर झुका। इस तरह उसने अनजाने में ही शिवरात्रि के दिन शिव-पूजन की पूरी प्रक्रिया कर ली। उसकी मृत्यु के बाद जब यमदूत उसे लेने आए, तो भगवान शिव जी के गणों ने उसकी रक्षा की और उन्हें भगा दिया।
यदि अज्ञानतावश महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव जी की पूजा का इतना अद्भुत फल है, तो समझ-बूझ कर देवाधिदेव महादेव का पूजन कितना अधिक फलदायी होगा।