मकर संक्रांति


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मकर संक्रांति 2021 जानिए पर्व का पौराणिक महत्व (Know the mythological significance of Makar Sankranti 2021)

आइए जानते हैं कि 2021 में मकर संक्रांति कब है और मकर संक्रांति 2021 की तिथि व मुहूर्त। हिंदू धर्म में मकर संक्रांति एक प्रमुख त्यौहार है। भारत के अलग-अलग इलाकों में इस पर्व को स्थानीय मान्यताओं के मुताबिक मनाया जाता है। हर साल सामान्यतः मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाती है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होता है, जबकि उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है। ज्योतिष मान्यताओं के मुताबिक इसी दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है।

अधिकतर हिंदू पर्वों की गणना चाँद पर आधारित पंचांग के द्वारा की जाती है लेकिन मकर संक्रांति त्यौहार सूर्य पर आधारित पंचांग की गणना से मनाया जाता है। मकर संक्रांति से ही ऋतु में बदलाव होने लगता है। शरद ऋतु खत्म होने लगती है और बसंत ऋतु का आगमन आरम्भ हो जाता है। इसके परिणाम स्वरूप दिन लंबे होने लगते हैं और रातें छोटी हो जाती है।

मकर संक्रांति का महत्व

धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण

भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से मकर संक्रांति का बड़ा ही महत्वपूर्ण है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक मकर संक्रांति वाले दिन भगवान सूर्य अपने बेटे शनि के घर जाते हैं। चूंकि शनि मकर और कुंभ राशि का स्वामी है। इसलिए यह त्यौहार पिता-पुत्र के अनोखे मिलन से भी जुड़ा है।

एक और कथा के अंतर्गत असुरों पर प्रभु विष्णु जी की जीत के तौर पर भी मकर संक्रांति मनाई जाती है। यह बताया जाता है कि मकर संक्रांति वाले दिन ही प्रभु विष्णु जी ने पृथ्वी लोक पर असुरों का विनाश कर उनके सिरों को काटकर मंदरा पर्वत पर गाड़ दिया था। तभी से ही प्रभु विष्णु जी की इस विजय को मकर संक्रांति त्योहार के तौर पर मनाया जाने लगा।

फसलों की कटाई का त्यौहार

नई फसल और नई ऋतु के आगमन के तौर पर भी मकर संक्रांति बड़ी उत्साह और उल्लास से मनाई जाती है। उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार को मिलाकर तमिलनाडु में भी इस समय नई फसल काटने का होता है, इसलिए किसान मकर संक्रांति को आभार दिन के रूप में मनाते हैं। खेतों में धान और गेहूं की लहलहाती फसल किसानों की मेहनत का फल होता है लेकिन यह सब प्रकृति और भगवान के आशीर्वाद से संभव होता है। जम्मू-कश्मीर और पंजाब में मकर संक्रांति को ’लोहड़ी’ के नाम से मनाया जाता है। तमिलनाडु में मकर संक्रांति को “पोंगल” के तौर पर मनाई जाती है, जबकि बिहार और उत्तर प्रदेश में ”खिचड़ी” के नाम से मकर संक्रांति मनाई जाती है। मकर संक्रांति पर कहीं जगहों पर खिचड़ी बनाई जाती है तो कहीं जगहों पर दही चूड़ा और तिल के लड्डू बनाए जाते हैं।

लौकिक महत्व

ऐसी मान्यता है कि जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर घूमता है, इस दौरान सूर्य की किरणों को बुरा माना गया है, लेकिन जब सूर्य पूर्व से उत्तर की ओर चक्कर लगाता है, तब उसकी किरणें शांति और सेहत को बढ़ाती हैं। इस वजह से साधु-संत और वे मनुष्य जो आध्यात्मिक क्रियाओं से जुड़े हैं उन्हें सिद्धि और शांति प्राप्त होती है। अगर सरल शब्दों में कहा जाए तो पहले के कड़वे अनुभवों को भुलकर मनुष्य आगे की ओर बढ़ता है। स्वयं प्रभु श्री कृष्ण जी ने गीता में कहा है कि, उत्तरायण के 6 महीने के शुभ समय में, जब भगवान सूर्य उत्तरायण होते हैं, तब धरती प्रकाशित रहती है, इसलिए इस प्रकाश में शरीर को छोड़ देने से मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता है और वह ब्रह्मा को प्राप्त होता है। महाभारत काल के दौरान भीष्म पितामह जिन्हें इच्छामृत्यु का वरदान मिला था। उन्होंने भी मकर संक्रांति के दिन शरीर को छोड़ दिया था।

मकर संक्रांति से जुड़े त्यौहार

भारत में मकर संक्रांति के दौरान जनवरी महीने में नई फसल का आगमन होता है। मकर संक्रांति के दिन किसान फसल की कटाई के पश्चात इस पर्व को धूमधाम से मनाते हैं। भारत के प्रत्येक राज्य में मकर संक्रांति को कई नामों से मनाया जाता है।

पोंगल

पोंगल दक्षिण भारत में खासकर केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में मनाए जाने वाले एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्यौहार है। पोंगल खासतौर से किसानों का त्यौहार है। मकर संक्रांति के दिन धान की फसल कटने के पश्चात व्यक्ति अपनी खुशी प्रकट करने के लिए पोंगल का त्यौहार मनाते हैं। पोंगल का पर्व ’तइ’ नामक तमिल माह की पहली तिथि यानी जनवरी के बीच में मनाया जाता है। 3 दिन तक चलने वाला यह त्यौहार भगवान सूर्य और इंद्र को समर्पित है। पोंगल के माध्यम से व्यक्ति उपजाऊ भूमि, अच्छी वर्षा और पहले से अच्छा फसल के लिए भगवान के प्रति आभार प्रकट करते हैं। पोंगल त्योहार के पहले दिन कूड़ा-कचरा जलाया जाता है, दूसरे दिन माँ लक्ष्मी की पूजा-अर्चना होती है और तीसरे दिन पशु धन को पूजा जाता है।

उत्तरायण

उत्तरायण विशेष रूप से गुजरात में मनाया जाने वाला त्यौहार है। नई फसल और ऋतु के आगमन पर यह त्यौहार 14 और 15 जनवरी को मनाया जाता है। उत्तरायण के दिन गुजरात में पतंग उड़ाई जाती है साथ ही पतंग उड़ाने का महा उत्सव का आयोजन किया जाता है, जो विश्वभर में मशहूर है। उत्तरायण त्यौहार के दिन व्रत रखा जाता है और तिल व मूंगफली दाने की चक्की बनाई जाती है।

लोहड़ी

लोहड़ी खासतौर से पंजाब में मनाया जाने वाला त्यौहार है, जो फसलों की कटाई के पश्चात 13 जनवरी को उत्साह और उल्लास से मनाया जाता है। लोहड़ी के दिन संध्या काल में होलिका जलाई जाती है और गुड़, तिल और मक्का अग्नि को प्रसाद के रूप में चढ़ाई जाती है।

माघ/भोगली बिहू

असम में माघ माह की संक्रांति के पहले दिन से माघ बिहू यानी भोगाली बिहू त्यौहार मनाया जाता है। भोगाली बिहू के मौके पर खान-पान धूमधाम से होता है। इस समय असम में चावल, तिल, गन्ने और नारियल की फसल अच्छी होती है। इसी से तरह-तरह के भोजन और पकवान बनाकर खाएं और खिलाए जाते हैं। भोगली बिहू पर भी होलिका जलाई जाती है और नारियल व तिल से बनाए भोजन अग्नि देवता को समर्पित किए जाते हैं। भोगली बिहू के अवसर पर टेकेली भोंगा नामक खेल खेला जाता है साथ ही भैंसों की लड़ाई भी होती है।

मकर संक्रांति पर परंपराएं

हिंदू धर्म में मीठे पकवानों के बिना हर पर्व अधूरा सा है। मकर संक्रांति पर गुड़ और तिल से बने लड्डू और अन्य मीठे पकवान बनाने की रीति-रिवाज है। गुड़ और तिल के सेवन से ठंड के मौसम में शरीर को गर्मी मिलती है और यह स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। ऐसी मान्यता है कि, मकर संक्रांति के दिन मीठे पकवानों को खाने और खिलाने से रिश्तों में आई कड़वाहट दूरी होती है और हम एक सकारात्मक ऊर्जा के साथ जीवन में आगे बढ़ते हैं। यह भी कहा जाता है कि मीठा खाने से आवाज और व्यवहार में मधुरता आती है और जीवन में खुशियों का संचार होता है। मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य के बेटे शनि के घर पहुंचने के अवसर पर गुड़ और तिल की बनी मिठाई बांटी जाती है।

गुड़ और तिल की मिठाई के अलावा मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने की भी परंपरा है। मध्य प्रदेश और गुजरात के साथ मिलकर देश के कई राज्यों में मकर संक्रांति के दौरान पतंग महोत्सव का आयोजन किया जाता है। मकर संक्रांति के दिन बच्चों से लेकर बड़े तक पतंगबाजी करते हैं। पतंगबाजी के समय पूरा आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से गुलजार हो जाता है।

तीर्थ दर्शन और मेले

मकर संक्रांति के दिन देश के कई शहरों में भी मेले लगते हैं। विशेष कर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और दक्षिण भारत में विशेष मेलों का आयोजन होता है। मकर संक्रांति वाले दिन लाखों भक्त गंगा और अन्य पवित्र नदियों के किनारे पर स्नान दान और धर्म करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अंतर्गत स्वयं प्रभु श्री कृष्ण जी ने कहा है कि, जो व्यक्ति मकर संक्रांति पर शरीर का त्याग करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह जीवन-मरण के चक्कर से मुक्त हो जाता है।