पापांकुशा एकादशी


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पापांकुशा एकादशी व्रत २०२१ : Papankusha Ekadashi fast 2021

पाप रूपी हाथी को व्रत के पुण्य रूपी अंकुश से बेधने के कारण ही इसका नाम पापकुंशा एकादशी हुआ। इस दिन मौन रहकर भगवद स्मरण करने और भजन-कीर्तन करने का विधान है। इस तरह, ईश्वर की आराधना से मन शुद्ध और प्रसन्न होता है और मनुष्य में सद्गुणों का खात्मा होता है। धार्मिक हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, इस एकादशी उपवास का पालन करने से मनुष्य को कठिन तपस्या के बराबर पुण्य मिलता है।

पापाकुंशा एकादशी व्रत की पूजा विधि

पापाकुंशा एकादशी उपवास के प्रभाव के कारण, कई अश्वमेघ और सूर्य यज्ञ करने के बराबर फल मिलता हैं। इसलिए पापाकुंशा एकादशी व्रत का बहुत महत्व है। इस व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है:

  1. इस व्रत के नियमों का पालन एक दिन पूर्व यानि दशमी तिथि से ही करना चाहिए। दशमी के दिन गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और दाल ये सात प्रकार के अनाज नहीं खाने चाहिए, क्योंकि इन सातो अनाजों की एकादशी के दिन पूजा की जाती है।
  2. एकादशी तिथि पर सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि के बाद उपवास की प्रतिज्ञा करें।
  3. संकल्प लेने के बाद, घट स्थापना करनी चाहिए और कलश पर भगवान विष्णु की मूर्ति रखकर आराधना करनी चाहिए। इसके बाद विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए।
  4. व्रत के अगले दिन द्वादशी तिथि को ब्राह्मणों को भोजन और दान करने के बाद उपवास खोलें।

पापाकुंशा एकादशी का महत्व

महाभारत काल में भगवान कृष्ण ने स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर को पापाकुंशा एकादशी का महत्व बताया था। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि यह एकादशी पाप को रोकती है, और तो और यह पाप कर्मों से रक्षा करती है। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य को अर्थ और मोक्ष को प्राप्त होता है। इस व्रत के वजह से मनुष्य के संचित पाप नष्ट हो जाते हैं।इस दिन श्रद्धा और भक्ति भाव से पूजा करनी चाहिए तथा ब्राह्मणों को दान व दक्षिणा भी देना चाहिए। इस दिन केवल फल खाया जाता है। इससे शरीर स्वस्थ रहता है और दिल खुश रहता है।

पापाकुंशा एकादशी व्रत कथा

प्राचीन काल में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नाम का एक महाक्रूर बहेलिया रहा  करता था। उसने अपनी सारी ज़िन्दगी हिंसा, डकैती, शराब और झूठे भाषणों में बिता दी। जब उसके जीवन का अंतिम चारण आया, तो यमराज ने अपने दूतों को क्रोधन को लाने का आदेश दिया। यमदूतों ने उससे कहा कि कल तुम्हारा आखिरी दिन है।

मृत्यु के डर से, वह बहेलिया महर्षि अंगिरा की शरण में उनके आश्रम पहुंचा। महर्षि ने उस पर दया दिखाई और पापाकुंशा एकादशी का उपवास करने की सलाह दी। इस तरह पापाकुंशा एकादशी का व्रत और पूजन करने से क्रूर फोलर को भगवान की कृपा से मोक्ष मिला।