फाल्गुन पूर्णिमा व्रत


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फाल्गुन पूर्णिमा व्रत 2021

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन महीने में आने वाली पूर्णिमा तिथि को फाल्गुन पूर्णिमा कहा जाता है। हिन्दू पुरानो में फाल्गुन पूर्णिमा का धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक का विशेष महत्व है। फाल्गुन पूर्णिमा के दिन सूर्य के निकलने से लेकर चंद्रमा के निकलने तक उपवास रखा जाता है। हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा का व्रत रखने से व्यक्ति के दुखों का अंत होता है और उस व्यक्ति पर प्रभु विष्णु जी का आशीर्वाद होता है। वहीं इस तिथि पर होली का पर्व मनाया जाता है।

फाल्गुन पूर्णिमा व्रत और पूजा विधि

प्रत्येक महीने की पूर्णिमा पर व्रत और पूजन की प्रथा लगभग समान है। फाल्गुन पूर्णिमा पर प्रभु श्री कृष्ण जी का पूजन होता है।

  1. फाल्गुन पूर्णिमा के दिन सुबह किसी पावन नदी या कुंड में स्नान करें और व्रत का प्रण लें।
  2. सुबह सूर्य निकलने से लेकर शाम को चंद्रमा के निकलने तक व्रत रखें। रात में चंद्रमा की पूजा करे।
  3. इस दिन स्नान, दान और भगवान का ध्यान करें।
  4. नारद पुराण के मुताबिक इस दिन लकड़ी व उपलों को एकत्रित करें। हवन के बाद विधि के अनुसार होलिका पर लकड़ी डालकर उसमें आग लगा दे।
  5. उसके बाद होलिका की परिक्रमा करते हुए हर्ष और उत्सव मनाना चाहिए।

फाल्गुन पूर्णिमा की कथा

नारद पुराण में फाल्गुन पूर्णिमा को लेकर एक कथा का उल्लेख मिलता है। यह कथा राक्षस हिरण्यकश्यप, उसके पुत्र और उसकी बहन होलिका से जुड़ी हुई है। राक्षसी होलिका हिरण्यकश्यप के पुत्र और प्रभु विष्णु जी के भक्त प्रह्लाद को जलाने के लिए अग्नि में बैठ गयी थी किन्तु भगवान विष्णु जी की कृपा से भक्त प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ और होलिका स्वयं ही अग्नि में जल कर राख हो गई। इसी कारण पुरातन काल से यह माना जाता है कि फाल्गुन पूर्णिमा के दिन लकड़ी व उपलों से होलिका का निर्माण करना चाहिए और शुभ मुहूर्त में विधि विधान से होलिका दहन करना चाहिए। होलिका दहन के समय प्रभु विष्णु जी व भक्त प्रह्लाद का स्मरण करना चाहिए।