हिन्दू कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन महीने में आने वाली पूर्णिमा तिथि को फाल्गुन पूर्णिमा कहा जाता है। हिन्दू पुरानो में फाल्गुन पूर्णिमा का धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक का विशेष महत्व है। फाल्गुन पूर्णिमा के दिन सूर्य के निकलने से लेकर चंद्रमा के निकलने तक उपवास रखा जाता है। हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा का व्रत रखने से व्यक्ति के दुखों का अंत होता है और उस व्यक्ति पर प्रभु विष्णु जी का आशीर्वाद होता है। वहीं इस तिथि पर होली का पर्व मनाया जाता है।
प्रत्येक महीने की पूर्णिमा पर व्रत और पूजन की प्रथा लगभग समान है। फाल्गुन पूर्णिमा पर प्रभु श्री कृष्ण जी का पूजन होता है।
नारद पुराण में फाल्गुन पूर्णिमा को लेकर एक कथा का उल्लेख मिलता है। यह कथा राक्षस हिरण्यकश्यप, उसके पुत्र और उसकी बहन होलिका से जुड़ी हुई है। राक्षसी होलिका हिरण्यकश्यप के पुत्र और प्रभु विष्णु जी के भक्त प्रह्लाद को जलाने के लिए अग्नि में बैठ गयी थी किन्तु भगवान विष्णु जी की कृपा से भक्त प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ और होलिका स्वयं ही अग्नि में जल कर राख हो गई। इसी कारण पुरातन काल से यह माना जाता है कि फाल्गुन पूर्णिमा के दिन लकड़ी व उपलों से होलिका का निर्माण करना चाहिए और शुभ मुहूर्त में विधि विधान से होलिका दहन करना चाहिए। होलिका दहन के समय प्रभु विष्णु जी व भक्त प्रह्लाद का स्मरण करना चाहिए।