आइये जानते हैं कि 2021 में पोंगल कब है और पोंगल 2021 की तिथि व मुहूर्त। भारत दक्षिण के राज्यों में मनाया जाने वाला पोंगल एक अहम हिंदू त्यौहार है। उत्तर भारत में जब भगवान सूर्य उत्तरायण होते हैं तो मकर संक्रांति त्यौहार मनाया जाता है ठीक उसी प्रकार तमिलनाडु में पोंगल का पर्व उत्साह और उल्लास से मनाया जाता है। पोंगल त्योहार से ही तमिलनाडु में नया साल का शुभारंभ होता है। पोंगल त्योहार का इतिहास करीब एक हजार वर्ष पुराना है। तमिलनाडु के साथ-साथ कनाडा, श्रीलंका और अमेरिका सहित दुनिया के कई देशों में रहने वाले तमिल भाषी व्यक्ति इस त्यौहार को उत्साह के साथ मनाते हैं।
पोंगल का महत्व
पोंगल त्योहार का मुख्य खेती है। सौर कैलेंडर के अनुसार यह पर्व तमिल के महीने की पहली तिथि यानी 14 या 15 जनवरी को आता है। जनवरी तक तमिलनाडु में धान और गन्ने की फसल पक कर तैयार हो जाती। प्रकृति की अनंत कृपा से खेतों में लहलहाती फसलों को देखकर किसान प्रसन्न हो जाते हैं और प्रकृति का धन्यवाद करने के लिए भगवान इंद्र, सूर्य और पशु धन यानी गाय और बैल की पूजा करते हैं। पोंगल पर्व करीब 3 से 4 दिन तक चलता है। इस दौरान घरों की लिपाई-पुताई और साफ-सफाई आरम्भ हो जाती है। यह मान्यता है कि तमिल भाषी व्यक्ति पोंगल के त्योहार पर बुरी आदतों को छोड़ देते हैं। इस रीति-रिवाज को पोही कहा जाता है।
पोंगल पर होने वाले धार्मिक कर्मकांड और अन्य आयोजन
- पोंगल त्योहार का प्रथम दिन देवराज इंद्र जी को समर्पित होता है इस दिन को भोगी पोंगल कहते हैं। देवराज इंद्र बारिश के लिए उत्तरदायी होते हैं इसलिए अच्छी वर्षा के लिए भगवान इंद्र जी की आराधना की जाती है और खेतों में हरियाली और जीवन में सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। पोंगल के दिन लोग अपने-अपने घरों में पुराने या ख़राब सामानों की होली जलाते हैं। इस दौरान औरतें और कन्याए अग्नि के चारों ओर लोक गीत पर नाचती हैं। इस परम्परा को भोगी मंटालू कहा जाता है।
- सूर्य के उत्तरायण होने के पश्चात दूसरे दिन सूर्य पोंगल त्योहार मनाया जाता है। इस दिन पोंगल नाम की खास खीर बनाई जाती है। इस अवसर पर व्यक्ति खुले आंगन में हल्दी की गांठ को पीले धागे में पिरोकर मिट्टी या पीतल की हांडी के ऊपर बांधकर उसमें दाल और चावल की खिचड़ी पकाते हैं। खिचड़ी में उबाल आने पर घी और दूध डाला जाता है। खिचड़ी में उबाल या उफान आना सुख-समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक है। पोंगल तैयार होने के पश्चात भगवान सूर्य की आराधना की जाती है। इस अवसर पर व्यक्ति गाते-बजाते हुए एक-दूसरे को सुख और समृद्धि की कामना करते हैं।
- पोंगल त्योहार के तीसरे दिन यानी मात्तु पोंगल पर खेती करने के लिए पशुओं जैसे गाय, बैल और सांड की पूजा की जाती है। इस अवसर पर बैलों और गायों को सजाया जाता है और उनके सींगों को रंगकर उनकी पूजा की जाती है। पोंगल वाले दिन बैलों की रेस यानी जल्लीकट्टू का आयोजन भी होता है। इसे मात्तु पोंगल या केनू पोंगल के नाम से भी कहा जाता है। जिसमें बहनें अपने भाइयों की खुशहाली और सुख-समृद्धि के लिए पूजा-अर्चना करती हैं।
- चार दिवसीय पोंगल त्योहार के अंतिम दिन कन्या पोंगल मनाया जाता है, इसे तिरुवल्लूर के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन घर को पुष्पों से सजाया जाता है। घर के दरवाजे पर नारियल और आम के पत्तों से तोरण बनाया जाता है। इस अवसर के दिन औरतें आंगन में रंगोली बनाती हैं। चूंकि इस दिन पोंगल त्योहार का समापन होता है इसलिए व्यक्ति एक-दूसरे को बधाइयां और मिठाई देते हैं।
पोंगल पर्व मुख्य रूप से तमिलनाडु में मनाया जाता है लेकिन इस त्योहार का आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व मानव समुदाय के लिए अति अहम है। पोंगल के दिन गाय के दूध में उफान या उबाल को महत्व दिया जाता है। यह मान्यता है कि जैसे दूध का उबलना शुभ है ठीक उसी तरह प्रत्येक व्यक्ति का मन भी शुद्ध संस्कारों से स्पष्ट होना चाहिए।