षटतिला एकादशी के दिन प्रभु श्री विष्णु जी की पूजा की जाती है। कुछ व्यक्ति बैकुण्ठ रूप में भी प्रभु विष्णु जी की पूजा करते हैं। षटतिला एकादशी पर तिल का विशेष महत्व बताया गया है। षटतिला एकादशी के दिन 6 प्रकार से तिलों का उपयोग किया जाता है। इनमें तिल का उबटन लगाना, तिल से स्नान, तिल से तर्पण, तिल से हवन, तिल का भोजन और तिलों का दान किया जाता है, इसी कारण इसे षटतिला एकादशी व्रत कहा जाता है।
षटतिला एकादशी के दिन विधि पूर्वक भगवान विष्णु जी की पूजा की विधि निमिन्लिखित है:
अपने नाम के अनुरूप यह उपवास तिल से संबंधित है। तिल का महत्व तो सर्वव्यापक है और हिन्दू धर्म के अनुसार तिल बहुत पवित्र माने जाते हैं। विशेषरूप से पूजा में इनका ख़ास महत्व होता है। षटतिला एकादशी के दिन तिल का 6 प्रकार से उपयोग किया जाता है।
मानना है कि षटतिला एकादशी के दिन तिलों का दान करने से पापों का अंत होता है और परभु विष्णु जी की कृपा से स्वर्ग लोक प्राप्त होता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एक समय नारद मुनि प्रभु विष्णु जी के धाम बैकुण्ठ पहुंचे। वहां उन्होंने प्रभु विष्णु जी से षटतिला एकादशी उपवास के महत्व के बारे में पूछा। नारद जी के आग्रह पर भगवान विष्णु जी ने बताया कि, प्राचीन काल में धरती पर एक ब्राह्मण की पत्नी रहती थी। उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी। वह मेरी अन्नय भक्त थी और पूरी श्रद्धा से मेरी आराधना करती थी। एक बार उसने एक माह तक उपवास रखकर मेरी आराधना की। उपवास के कारण उसका शरीर तो शुद्ध हो गया किन्तु वह कभी ब्राह्मण एवं देवताओं के लिए अन्न दान नहीं करती थी, इसलिए मैंने सोचा कि यह स्त्री बैकुण्ठ में रहकर भी अतृप्त रहेगी अत: मैं स्वयं एक दिन उसके पास भिक्षा मांगने गया।
जब मैंने उस स्त्री से भिक्षा की मांग की तब उस स्त्री ने एक मिट्टी का पिण्ड उठाकर मेरे हाथों में रख दिया। मैं वह पिण्ड लेकर अपने धाम वापस आया। कुछ समय बाद वह स्त्री शरीर त्याग कर मेरे लोक में आ गई। यहां उसे एक कुटिया(झोंपड़ी) और आम का पेड़ मिला। खाली कुटिया(झोंपड़ी) को देखकर वह घबराकर मेरे पास आई और उसने मुझे कहा, मैं तो धर्मपरायण हूं फिर मुझे खाली कुटिया(झोंपड़ी) क्यों मिली? तब मैंने उसे बताया कि यह अन्नदान नहीं करने तथा मुझे मिट्टी का पिण्ड देने से हुआ है। मैंने फिर उस स्त्री बताया कि जब देव कन्याएं आपके पास आपसे मिलने आएं तब आप अपनी कुटिया(झोंपड़ी) का द्वार तभी खोलना जब तक वे आपको षटतिला एकादशी के उपवास का विधान न बताएं।
उस स्त्री ने ऐसा ही किया और जिन विधियों को देवकन्या ने कहा था उस विधि से षटतिला एकादशी का उपवास किया। उपवास के परिणाम स्वरूप उसकी कुटिया(झोंपड़ी) अन्न और धन से भर गई। इसलिए हे नारद इस बात को सत्य मानों कि, जो व्यक्ति इस एकादशी का उपवास करता है और तिल एवं अन्नदान करता है उस व्यक्ति को मुक्ति और वैभव प्राप्त होगा।