दिनांक | त्यौहार |
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रविवार, 10 जनवरी | प्रदोष व्रत (कृष्ण) |
मंगलवार, 26 जनवरी | भौम प्रदोष व्रत (शुक्ल) |
मंगलवार, 09 फरवरी | भौम प्रदोष व्रत (कृष्ण) |
बुधवार, 24 फरवरी | प्रदोष व्रत (शुक्ल) |
बुधवार, 10 मार्च | प्रदोष व्रत (कृष्ण) |
शुक्रवार, 26 मार्च | प्रदोष व्रत (शुक्ल) |
शुक्रवार, 09 अप्रैल | प्रदोष व्रत (कृष्ण) |
शनिवार, 24 अप्रैल | शनि प्रदोष व्रत (शुक्ल) |
शनिवार, 08 मई | शनि प्रदोष व्रत (शुक्ल) |
सोमवार, 24 मई | सोम प्रदोष व्रत (शुक्ल) |
सोमवार, 07 जून | सोम प्रदोष व्रत (कृष्ण) |
मंगलवार, 22 जून | भौम प्रदोष व्रत (शुक्ल) |
बुधवार, 07 जुलाई | प्रदोष व्रत (कृष्ण) |
बुधवार, 21 जुलाई | प्रदोष व्रत (शुक्ल) |
गुरुवार, 05 अगस्त | प्रदोष व्रत (कृष्ण) |
शुक्रवार, 20 अगस्त | प्रदोष व्रत (शुक्ल) |
शनिवार, 04 सितंबर | शनि प्रदोष व्रत (कृष्ण) |
शनिवार, 18 सितंबर | शनि प्रदोष व्रत (शुक्ल) |
सोमवार, 04 अक्टूबर | सोम प्रदोष व्रत (कृष्ण) |
रविवार, 17 अक्टूबर | प्रदोष व्रत (शुक्ल) |
मंगलवार, 02 नवंबर | भौम प्रदोष व्रत (कृष्ण) |
मंगलवार, 16 नवंबर | भौम प्रदोष व्रत (शुक्ल) |
गुरुवार, 02 दिसंबर | प्रदोष व्रत (कृष्ण) |
गुरुवार, 16 दिसंबर | प्रदोष व्रत (शुक्ल) |
शुक्रवार, 31 दिसंबर | प्रदोष व्रत (कृष्ण) |
प्रदोष व्रत को हिन्दू धर्म में त्रयोदशी व्रत के नाम से भी जानते हैं। यहाँ आप पाएंगे आने वाली प्रदोष व्रत तारीख 2021 में है। यह उपवास माँ पार्वती और प्रभु शिव को समर्पित है। प्राचीन के मुताबिक इस को करने से अच्छा स्वस्थ और दीर्घायु की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के मुताबिक प्रदोष व्रत एक वर्ष में कई बार आता है। प्रायः यह उपवास माह में दो बार आता है।
क्या है प्रदोष व्रत?
हर एक महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष को त्रयोदशी मनाते है। हर एक पक्ष की त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहा जाता है। सूरज ढलने के बाद और रात होने से पहले का समय प्रदोष काल कहलाता है। इस उपवास में प्रभु शिव की पूजा करते है।हिन्दू धर्म में व्रत, पूजा-पाठ, उपवास आदि को काफी महत्व दिए जाते है। ऐसा माना जाता है कि सच्चे मन से उपवास रखने पर मनुष्य को मनचाहे वस्तु की प्राप्ति होती है। वैसे तो हिन्दू धर्म में हर माह की हर एक तारीख को कोई न कोई उपवास या व्रत होते हैं लेकिन इन सब में प्रदोष व्रत की बहुत मान्यता है।
शास्त्रों के मुताबिक माह के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि में संध्याकाल को प्रदोष कहा गया है। ऐसी मान्यता है कि प्रभु शिव प्रदोष के समय कैलाश पर्वत स्थित अपने रजत भवन में नाचते हैं। इसी वजह से मनुष्य शिव जी को खुश करने के लिए इस दिन प्रदोष व्रत रखते हैं। इस उपवास को करने से हर प्रकार के दोष और सारे कष्ट मिट जाते हैं। कलयुग में प्रदोष व्रत को करना बहुत मंगलकारी होता है और शिव जी कृपा प्रदान करते है। सप्ताह के सातों दिन किये जाने वाले प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। प्रदोष को कई स्थानों पर अलग-अलग नामों द्वारा जाना जाता है। दक्षिण भारत में व्यक्ति प्रदोष को प्रदोषम के नाम से जानते हैं।
अलग-अलग तरह के प्रदोष व्रत और उनसे मिलने वाले लाभ
प्रदोष व्रत का अलग-अलग वार के मुताबिक अलग-अलग महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि जिस दिन यह उपवास किया जाता है उसके मुताबिक इसका नाम और इसके महत्व बदल जाते हैं।
अलग-अलग वार के अनुसार प्रदोष व्रत के निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते है-
- जो भक्त रविवार को प्रदोष व्रत रखते हैं, उनकी दीर्घायु होती है और उनका अच्छा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है।
- सोमवार के दिन के प्रदोष व्रत को सोम प्रदोष या चाँद प्रदोष भी कहा जाता है और इसे मनोकामनाओं की पूर्ति करने के लिए किया जाता है।
- जो प्रदोष व्रत मंगलवार को रखे जाते हैं उनको भौम प्रदोष कहा जाता है। इस दिन उपवास रखने से हर तरह के बीमारियों से मुक्ति मिलती है और स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं नहीं होती।
- बुधवार के दिन इस उपवास को करने से हर तरह की कामना पूरी होती है।
- वह लोग जो वीरवार के दिन प्रदोष व्रत करने से दुश्मनों का नाश होता है।
- वो मनुष्य जो शुक्रवार के दिन प्रदोष व्रत रखते हैं, उनके जीवन में अच्छी किस्मत की वृद्धि होती है और दांपत्य जीवन में सुख-शांति आती है।
- शनिवार के दिन के प्रदोष व्रत को शनि प्रदोष कहा जाता है और व्यक्ति इस दिन पुत्र प्राप्ति की चाह में यह उपवास करते हैं। अपनी इच्छाओं को ध्यान में रख कर प्रदोष व्रत करने से फल की प्राप्ति निश्चित ही होती है।
प्रदोष व्रत का महत्व
प्रदोष व्रत को हिन्दू धर्म में बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन पूरी श्रद्धा से प्रभु शिव की पूजा करने से जातक के सारे दुःख दूर होते हैं और मरने के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुराणों के मुताबिक एक प्रदोष व्रत करने का फल दो गायों के दान जितना होता है। इस व्रत के महत्व को वेदों के महाज्ञानी सूतजी ने गंगा नदी के किनारे पर शौनकादि ऋषियों को बताया था। उन्होंने कहा था कि कलयुग में जब अधर्म का रुतबा रहेगा, मनुष्य धर्म के रास्ते को छोड़कर अन्याय की रास्ता पर जा रहे होंगे उस समय प्रदोष व्रत एक माध्यम बनेगा जिसके द्वारा वो शंकर की पूजा करके अपने पापों का प्रायश्चित कर सकेगा और अपने सारे दुखों को दूर कर सकेगा। सबसे पहले इस व्रत के महत्व के बारे में प्रभु शिव ने माता पार्वती को बताया था, उसके बाद सूत जी को इस व्रत के बारे में महर्षि वेदव्यास जी ने सुनाया, जिसके बाद सूत जी ने इस व्रत की महिमा के बारे में शौनकादि ऋषियों को बताया था।
प्रदोष व्रत अन्य दूसरे व्रतों से अधिक शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता यह भी है इस दिन प्रभु शंकर की पूजा करने से जीवन काल में किये गए सभी पापों का नाश होता है और मरने के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुराणों के मुताबिक एक प्रदोष व्रत रखने का पुण्य दो गाय दान करने जितना होता है।
इस उपवास में व्रती को जल के बिना रहकर उपवास रखना होता है। प्रातः काल नहाने के बाद प्रभु शिव को बेलपत्र, गंगाजल, अक्षत, धूप, दीप के साथ पूजा करें। शाम के समय में पुन: नहा करके इसी प्रकार से शंकर जी की आराधना करना चाहिए। इस प्रकार प्रदोषम व्रत करने से व्रती को पुण्य मिलता है।
प्रदोष व्रत की विधि
संध्याकाल में प्रदोष व्रत पूजा के समय के लिए अच्छा माना जाता है क्योंकि हिन्दू पंचांग के मुताबिक सभी शिव मंदिरों में संध्याकाल में प्रदोष मंत्र का जाप करते हैं।
चलिए आपको बताते हैं प्रदोष व्रत के नियम और विधि–
- प्रदोष व्रत करने के लिए सर्वप्रथम आप त्रयोदशी के दिन सूरज निकलने से पहले उठ जाएं।
- नहाने के बाद आप साफ़ कपड़ा धारण कर लें।
- उसके बाद आप बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि से प्रभु शिव की आराधना करें।
- इस उपवास में भोजन नहीं करना चाहिए।
- पूरे दिन का व्रत रखने के बाद सूरज ढलने से कुछ देर पहले दोबारा नहा ले और उसके बाद सफ़ेद रंग का कपड़ा पहन ले।
- आप साफ़ पानी या गंगा जल से पूजा की जगह को शुद्ध कर लें।
- अब आप गाय का गोबर ले और उसकी सहायता से मंडप तैयार कर लें।
- पांच अलग-अलग रंगों की सहायता से आप मंडप में रंगोली बना लें।
- पूजा की सारी तैयारी करने के बाद आप उतर-पूर्व दिशा में मुंह करके कुशा के स्थान पर बैठ जाएं।
- प्रभु शिव के मंत्र ऊँ नम: शिवाय का जाप करें और शिव को जल चढ़ाएं।
धार्मिक दृष्टिकोण से आप जिस दिन भी प्रदोष व्रत रखना चाहते हों, उस वार के अंतर्गत आने वाली त्रयोदशी को चुनें और उस वार के लिए निर्धारित कथा पढ़ें और सुनें।
प्रदोष व्रत का उद्यापन
जो भक्त इस उपवास को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशी तक रखते हैं, उन्हें इस उपवास का उद्यापन विधिवत तरीके से करना चाहिए।
- उपवास का उद्यापन आप त्रयोदशी तिथि पर ही करें।
- उद्यापन करने से एक दिन पहले श्री गणपति की आराधना की जाती है और उद्यापन से पहली वाली रात को कीर्तन करते हुए जागरण करते हैं।
- अगले दिन सुबह जल्दी उठकर मंडप बनाना होता है और उसे कपड़ों और रंगोली से सजाया जाता है।
- ऊँ उमा सहित शिवाय नम: मंत्र का 108 बार जाप करते हुए हवन करते हैं।
- खीर का इस्तेमाल हवन में आहुति के लिए किया जाता है।
- हवन खत्म होने के बाद प्रभु शिव की आरती और शान्ति पाठ करते हैं।
- अंत में दो ब्राह्मणों को खाना खिलाया जाता है और अपनी इच्छा के अनुसार दान दक्षिणा देते हुए उनसे आशीर्वाद लेते हैं।
प्रदोष व्रत कथा
किसी भी व्रत को करने के पीछे कोई न कोई पौराणिक महत्व और कथा जरूर होती है। तो चलिए जानते हैं इस व्रत की पौराणिक कथा के बारे में -
स्कंद पुराण में दी गयी एक कथा के अनुसार प्राचीन समय की बात है। एक विधवा ब्राह्मणी अपने बेटे के साथ प्रतिदिन भीख मांगने जाती और शाम के समय तक लौट आती। हमेशा की तरह एक दिन जब वह भीख लेकर वापस लौट रही थी तो उसने नदी के तट पर एक बहुत ही सुन्दर बच्चे को देखा और लेकिन ब्राह्मणी नहीं पहचानती थी कि वह बच्चा कौन है और किसका है ?
दरअसल उस बच्चे का नाम धर्मगुप्त था और वह विदर्भ देश का राजकुमार था। उस बच्चे के पिता जो कि विदर्भ देश के राजा थे, शत्रुओं ने उन्हें युद्ध में मौत के घाट उतार दिया और राज्य को अपने अधीन कर लिया। पिता के शोक में धर्मगुप्त की मां भी चल बसी और दुश्मनों ने धर्मगुप्त को राज्य से बाहर कर दिया। बच्चे की हालत देखकर ब्राह्मणी ने उसे अपना लिया और अपनी संतान के साथ ही उसका भी पालन-पोषण किया।
कुछ दिनों बाद ब्राह्मणी अपने दोनों बच्चों को लेकर देवयोग से देव मंदिर गई, वही उनकी भेंट ऋषि शांडिल्य से हुई।ऋषि शांडिल्य एक विख्यात ऋषि थे, जिनकी विवेक और बुद्धि की हर स्थान पर चर्चा थी।
ऋषि ने ब्राह्मणी को उस बच्चे के अतीत यानी कि उसके माता-पिता के मौत के बारे में बताया, जिसे सुन ब्राह्मणी बहुत उदास हुई। ऋषि ने ब्राह्मणी और उसके दोनों बेटों को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी और उससे जुड़े पूरे विधि-विधान के बारे में बताया। ऋषि के बताए गए नियमों के अनुसार ब्राह्मणी और बच्चों ने व्रत सम्पन्न किया लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि इस उपवास का फल क्या मिल सकता है।
कुछ दिनों बाद दोनों बच्चे वन विहार कर रहे थे तभी उन्हें वहां कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आईं जो कि बहुत सुन्दर थी। राजकुमार धर्मगुप्त अंशुमती नाम की एक गंधर्व कन्या की ओर आकर्षित हो गए। कुछ समय बाद राजकुमार और अंशुमती दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे और कन्या ने राजकुमार को शादी हेतु अपने पिता गंधर्वराज से मिलने के लिए बुलाया। कन्या के पिता को जब यह पता चला कि वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार है तो उसने प्रभु शिव की आज्ञा से दोनों का विवाह कराया।
राजकुमार धर्मगुप्त की ज़िन्दगी वापस बदलने लगी। उसने बहुत संघर्ष किया और दोबारा अपनी गंधर्व सेना को तैयार किया। राजकुमार ने विदर्भ देश पर वापस आधिपत्य प्राप्त कर लिया।
कुछ समय बाद उसे यह मालूम हुआ कि बीते समय में जो कुछ भी उसे हासिल हुआ है वह ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के द्वारा किये गए प्रदोष व्रत का फल था। उसकी सच्ची पूजा से खुश होकर भगवान शंकर ने उसे जीवन की हर परेशानी से लड़ने की शक्ति दी। उसी समय से हिदू धर्म में यह मान्यता हो गई कि जो भी मनुष्य प्रदोष व्रत के दिन शिवपूजा करेगा और एकाग्र होकर प्रदोष व्रत की कथा पढ़ेगा और सुनेगा उसे सौ जन्मों तक कभी किसी परेशानी या फिर दरिद्रता का सामना नहीं करना पड़ेगा।