पौष महीने में शुक्ल पक्ष की एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। पौष पुत्रदा एकादशी के दिन सुदर्शन चक्रधारी प्रभु विष्णु जी की आराधना की जाती है। यह मान्यता है कि इस उपवास को करने से पुत्र की प्राप्ति होती है, इसलिए इसे पौष पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। महिला संप्रदाय में इस उपवास का बड़ा महत्व और प्रचलन है। इस उपवास के प्रभाव से पुत्र की रक्षा भी होती है।
पौष पुत्रदा एकादशी वाले दिन श्रद्धापूर्वक प्रभु विष्णु जी का पूजन किया जाता है। इस उपवास की पूजा विधि निम्नलिखित है-
पुराणिक समय भद्रावती नगर में राजा सुकेतु का राज्य था। उसकी पत्नी का नाम शैव्या था। पुत्र नहीं होने की वजह से दोनों पति-पत्नी परेशान रहते थे। एक दिन राजा और रानी मंत्री को राजपाट सौंप कर जंगल को चले गये। इस समय में उनके मन में आत्महत्या करने का विचार आया लेकिन उसी समय राजा को यह बोध हुआ कि आत्महत्या से बढ़कर कोई पाप नहीं है। अचानक उन्हें वेद पाठ के स्वर सुनाई दिया और वे उसी दिशा में बढ़ते चले गए। ऋषि-मुनियों के पास पहुंचने पर उन्हें पौष पुत्रदा एकादशी के महत्व का पता चला। इसके बाद दोनों पति-पत्नी ने पौष पुत्रदा एकादशी का उपवास किया और इसके प्रभाव से सुकेतु और शैव्या को पुत्र की प्राप्ति हुई। इसके बाद से ही पौष पुत्रदा एकादशी का महत्व बढ़ने लगा। वे दंपती जो नि:सन्तान हैं उन्हें श्रद्धापूर्वक पौष पुत्रदा एकादशी का उपवास जरूर करना चाहिए।