निर्जला एकादशी


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निर्जला एकादशी व्रत 2021, आज, पढ़ें व्रत कथा और जानें क्यों कहते हैं इसे भीमसेनी एकादशी : Nirjala Ekadshi 2021

एक वर्ष में चौबीस एकादशी पड़ती हैं। इनमें निर्जला एकादशी को उत्कृष्ट माना गया है। इसे भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि महर्षि वेद व्यास के अनुसार भीमसेन ने इसे धारण किया था। ऐसा माना जाता है कि इस एकादशी का व्रत करने से वर्ष में सभी होने वाली एकादशी उपवासों का लाभा प्राप्त होता है। द्वादशी के सूर्योदय से सूर्योदय तक पानी नहीं पीने की परंपरा के कारण इस व्रत को निर्जला एकादशी कहा जाता है। इस दिन निर्जल रहकर भगवान विष्णु जी की पूजा करने की परंपरा है। इस व्रत को रखने से दीर्घायु और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

निर्जला एकादशी व्रत पूजा विधि

जो भक्त वर्ष की सभी एकादशियों के व्रत का पालन करने में असमर्थ हैं, उन्हें निर्जला एकादशी का व्रत करना चाहिए। क्योंकि इस व्रत का पालन करने से अन्य सभी एकादशियों व्रत रखने के समान पुण्य मिलता है। इस व्रत की विधि इस प्रकार है:

  1. इस उपवास में एकादशी तिथि के सूर्योदय से अगले दिन द्वादशी के सूर्योदय तक पानी और भोजन नहीं लिया जाता है।
  2. एकादशी पर सुबह जल्दी स्नान करने के बाद सबसे पहले भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा की जनि चाहिए। इसके बाद भगवान का ध्यान करते हुए ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र' का जाप करना चाहिए।
  3. इस दिन व्यक्ति को भक्ति के साथ कथा सुननी चाहिए और भगवान का कीर्तन करना चाहिये।
  4. इस दिन व्रती को चाहिए कि वह जल से कलश को भरे और सफेद कपड़े से उसे ढक कर रखें और उस पर चीनी तथा दान-दक्षिणा रखकर ब्राह्मण को दान दें।

इसके बाद दान, पुण्य कर के इस व्रत को पूरा किया जाता है। धार्मिक महत्व की दृष्टि से इस व्रत का परिणाम दीर्घायु, स्वास्थ्य के साथ-साथ सभी पापों का विनाश करने वाला भी माना जाता है।

निर्जला एकादशी पर दान का महत्व

इस एकादशी व्रत को धारण करने वाले व्यक्ति को अन्न, जल, आसन, वस्त्र, जूते, पंखुड़ी, छाते और फल आदि का दान करना चाहिए। इस दिन जो भक्त जल कलश का दान करते हैं, उन्हें वर्ष भर के सभी एकादशियों के बराबर फल प्राप्त होते हैं। इस एकादशी का व्रत करने से अन्य एकादशियों पर भोजन करने के दोष को समाप्त कर देता है और संपूर्ण एकादशी के पुण्य का सुख भी मिलता है। जो भक्त इस पवित्र एकादशी का व्रत करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है और अयोग्य पद को प्राप्त करता है।

निर्जला एकादशी व्रत कथा

महाभारत काल के समय एक बार पाण्डु पुत्र भीम ने महर्षि वेद व्यास जी से पूछा- ‘’हे परम आदरणीय मुनिवर! मेरे परिवार के सभी लोग एकादशी व्रत करते हैं व मुझे भी व्रत करने के लिए कहते हैं। लेकिन मैं भूख नहीं रह सकता हूं अतः: आप मुझे कृपा करके बताएं कि बिना उपवास किए एकादशी का फल कैसे प्राप्त किया जा सकता है।’’

एक बार महाभारत के समय, पाण्डु के पुत्र भीम ने महर्षि वेद व्यास जी से पूछा, "हे परम श्रद्धेय मुनि! मेरे परिवार के सभी लोग एकादशी का व्रत रखते हैं और मुझसे उपवास करने के लिए कहते हैं। लेकिन मैं भूखा नहीं रख सकता हूँ, इसलिए कृपया मुझे बताएं कि एकादशी का उपवास मैं बिना रखे कैसे पूरा कर सकता हूँ और उसका फल कैसे प्राप्त कर सकता हूँ ”

भीम के अनुरोध पर, वेदव्यास जी ने कहा- "पुत्र, तुम निर्जला एकादशी का व्रत करो, इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है।" इस दिन अन्न और जल दोनों का त्याग करना पड़ता है। कोई भी व्यक्ति जो एकादशी तिथि के सूर्योदय से लेकर द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक बिना पानी पिए निर्जला व्रत को सच्ची श्रद्धा से करता है, उसे इस एकादशी व्रत का पालन करने से वर्ष में आने वाली सभी एकादशी का फल प्राप्त होता है।''

महर्षि वेद व्यास के वचन सुनकर भीमसेन निर्जला एकादशी का उपवास करने लगे और सभी पाप से मुक्त हो गए।