9 जनवरी, 2021 के लिए सफला एकादशी का मुहूर्त New Delhi, India के लिए
सफला एकादशी पारणा मुहूर्त:
07:15:18 से 09:20:38 तक 10, जनवरी को
अवधि:
2 घंटे 5 मिनट
30 दिसंबर, 2021 के लिए सफला एकादशी का मुहूर्त New Delhi, India के लिए
सफला एकादशी पारणा मुहूर्त:
07:13:29 से 09:17:40 तक 31, दिसंबर को
अवधि:
2 घंटे 4 मिनट
पौष महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहा जाता है। सफला से आशय सफलता, माना जाता है कि इस एकादशी का व्रत करने से सारे काम सफल हो जाते हैं, इसलिए इसे सफला एकादशी कहा गया है। इस दिन प्रभु अच्युत जी की पूजा-अर्चना की जाती है।
सफला एकादशी पूजा विधि
- सफला एकादशी का उपवास रखने वाले भक्त को इस दिन प्रभु अच्युत जी की पूजा करनी चाहिए। इस उपवास की पूजा नियम निम्नलिखित है-
- सवेरे उठकर नहाने के बाद उपवास का प्रतिज्ञा लेकर प्रभु को धूप, दीप, फल और पंचामृत आदि अर्पित करना चाहिए।
- सुपारी, नारियल, आंवला अनार और लौंग आदि से प्रभु अच्युत जी की पूजा करनी चाहिए।
- इस दिन रात के समय में जागरण करे और श्री हरि के नाम के भजन करने का बड़ा महत्व है।
- उपवास के अगले दिन द्वादशी पर किसी जरूरतमंद लोग या ब्राह्मणों को भोजन कराकर, दान-दक्षिणा देकर उपवास का पारण करना चाहिये।
सफला एकादशी पर ये काम ना करें
- इस दिन जमीन पर सोना चाहिए।
- मांस-मछली, नशीली पदार्थ, प्याज और लहसुन का सेवन न करें।
- सफला एकादशी की सुबेरे दातुन करना भी वर्जित माना गया है।
- इस दिन किसी वृक्ष या पौधे की पुष्प-पत्ती तोड़ना भी अशुभ माना जाता है।
सफला एकदशी का महत्व
सफला एकादशी का महत्व धार्मिक ग्रंथों में धर्मराज युधिष्ठिर और प्रभु श्री कृष्ण जी के मध्य बातचीत के रूप में उल्लेखित है। माना जाता है कि 1 हजार अश्वमेध यज्ञ मिल कर भी इतना फायदा नहीं दे सकते जितना सफला एकादशी का व्रत रख कर मिल सकता है। सफला एकादशी का दिन एक ऐसे दिन के रूप में उल्लेखित है कि इस दिन उपवास रखने से दुखों का अंत होता है और भाग्य खुल जाता है। सफला एकादशी का व्रत रखने से लोगों की कई सारी मनोकामनाएं और सपने पुरे होने में सहायता मिलती है।
पौराणिक कथा
पुराने समय में चंपावती नगर में राजा महिष्मत राज्य करते थे। राजा के 4 बेटे थे, उनमें ल्युक बड़ा पापी और दुष्ट था। वह अपने पिता के धन और संपत्ति को गलत कामो में नष्ट करता रहता था। एक दिन राजा ने दुखी होकर ल्यूक को देश से बाहर निकाल दिया लेकिन फिर भी उसकी लूटपाट और चोरी करना की आदत नहीं छूटी। एक समय उसे 3 दिन तक खाना नहीं मिला। उस दौरान वह भटकता- भटकता एक ऋषि की कुटिया के पास पहुंच गया। सौभाग्य से उस दिन ‘सफला एकादशी’ थी। ऋषि ने उसका सत्कार किया और उसे खाना दिया। ऋषि के इस स्वभाव से उसकी बुद्धि में परिवर्तन हो गया। वह ऋषि के चरणों में लेट गया। ऋषि ने उसको अपना शिष्य बना लिया और धीरे-धीरे ल्युक का चरित्र निर्मल और शुद्ध हो गया। वह ऋषि की आज्ञा से एकादशी का व्रत रखने लगा। जब ल्युक बिल्कुल बदल गया तब ऋषि अपने असली रूप में प्रकट हुए। ऋषि के वेश में स्वयं ल्युक के पिता सामने थे। उसके बाद ल्युक ने राज्य संभालकर आदर्श प्रस्तुत किया और वह आजीवन सफला एकादशी का व्रत रखने लगा।