संकष्टी चतुर्थी


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संकष्टी चतुर्थी व्रत 2021 हिंदी में (Sankashti Chaturthi fast 2021 in Hindi)

दिनांक त्यौहार
शनिवार, 02 जनवरी संकष्टी चतुर्थी
रविवार, 31 जनवरी संकष्टी चतुर्थी
मंगलवार, 02 मार्च अंगारकी चतुर्थी
बुधवार, 31 मार्च संकष्टी चतुर्थी
शुक्रवार, 30 अप्रैल संकष्टी चतुर्थी
शनिवार, 29 मई संकष्टी चतुर्थी
रविवार, 27 जून संकष्टी चतुर्थी
मंगलवार, 27 जुलाई अंगारकी चतुर्थी
बुधवार, 25 अगस्त संकष्टी चतुर्थी
शुक्रवार, 24 सितंबर संकष्टी चतुर्थी
रविवार, 24 अक्टूबर संकष्टी चतुर्थी
मंगलवार, 23 नवंबर अंगारकी चतुर्थी
बुधवार, 22 दिसंबर संकष्टी चतुर्थी

संकष्टी चतुर्थी हिन्दू धर्म का एक प्रसिद्ध पर्व है। हिन्दू मान्यताओं के अंतर्गत किसी भी शुभ काम को करने से पहले प्रभु श्री गणेश की आराधना की जाती है। प्रभु गणपति जी को अन्य सभी देवी-देवताओं में पहले पूजा किया जाता है। इन्हें बल, बुद्धि और विवेक का देवता का दर्जा दिया जाता है। प्रभु श्री गणेश अपने भक्तों की सभी समस्याओं और विघ्नों को हर लेते हैं इसलिए इन्हें संकटमोचन और विघ्नहर्ता भी कहा जाता है। वैसे तो हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं को खुश करने के लिए बहुत सारे व्रत-उपवास आदि किए जाते हैं, लेकिन प्रभु गणपति जी के लिए किए जाने वाला संकष्टी चतुर्थी व्रत काफी प्रसिद्ध है। आइए जानते हैं संकष्टी चतुर्थी के बारे में विस्तार से–

क्या है संकष्टी चतुर्थी?

संकष्टी चतुर्थी का अर्थ होता है संकट को हरने वाली चतुर्थी। संकष्टी संस्कृत भाषा से लिया गया एक शब्द है, जिसका मतलब होता है ‘कठिन समय से मुक्ति पाना’।

संकष्टी चतुर्थी के दिन मनुष्य अपने दुखों से छुटकारा पाने के लिए भगवान गणेश जी की पूजा करते है। पुराणों के मुताबिक चतुर्थी के दिन पार्वती के पुत्र गणपति की पूजा-अर्चना करना बहुत पुण्य दायक होता है। इस दिन मनुष्य सूर्य निकलने के समय से लेकर चंद्रमा निकलने के समय तक व्रत रखते हैं। संकष्टी चतुर्थी को पूर्ण विधि-विधान से भगवान श्री गणेश की पूजा-पाठ की जाती है।

कब है संकष्टी चतुर्थी ?

संकष्टी चतुर्थी कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के चौथे दिन मनाई जाती है। हिन्दू पंचांग के अंतर्गत चतुर्थी हर माह में दो बार आती है जिसे हर व्यक्ति बहुत आदर-सम्मान से मनाते हैं। पूर्णिमा के पश्चात आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं, वहीं अमावस्या के पश्चात आने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं। संकष्टी चतुर्थी को प्रभु श्री गणेश की पूजा करने के लिए विशेष दिन माना गया है। शास्त्रों के मुताबिक माघ महीने में पड़ने वाली पूर्णिमा के पश्चात की चतुर्थी बहुत शुभ होती है। इस दिन भारत के उत्तरी और दक्षिणी राज्यों में अधिक धूमधाम से मनाया जाता है।

संकष्टी चतुर्थी के अलग-अलग नाम

भगवान गणपति जी को समर्पित इस पर्व में भक्त अपने जीवन की परेशानियों और बुरे समय से निजात पाने के लिए उनकी पूजा-अर्चना और व्रत रखते हैं। संकष्टी चतुर्थी को कई भिन्न-भिन्न नामों से भी जाना जाता है। कई स्थानों पर इसे संकट हारा भी कहते हैं तो कहीं-कहीं सकट चौथ भी। यदि किसी माह में यह त्यौहार मंगलवार को पड़ता है तो इसे अंगारकी चतुर्थी कहा जाता है। अंगारकी चतुर्थी हर 6 महीनों में एक बार आती है और इस दिन उपवास करने से जातक को पूरे संकष्टी का फायदा मिल जाता है। भारत के दक्षिण भाग में व्यक्ति संकष्टी चतुर्थी के दिन को बहुत उत्साह और प्रसन्नता से मनाते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन भगवान गणेश जी को यदि सच्चे मन से ध्यान करे तो उस व्यक्ति की सारी अभिलाषाए पूरी हो जाती हैं और जातक को विशेष लाभ प्राप्त होता है।

संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि

गणपति में श्रद्धा रखने वाले लोग इस दिन व्रत रखकर उन्हें प्रसन्न कर अपने मनचाहे इच्छा की कामना करते हैं।

  • इस दिन आप प्रातः काल सूर्य निकलने से पहले उठ जाएँ।
  • उपवास रखने वाले व्यक्ति सर्वप्रथम स्नान कर साफ़ और धुले हुए वस्त्र धारण कर लें। इस दिन लाल रंग का वस्त्र धारण करना अति शुभ माना जाता है और साथ में यह भी कहा जाता है कि ऐसा करने से उपवास सफल होता है।
  • नहाने के पश्चात वे श्री गणेश जी की पूजा करने की शुरुआत करें। भगवान गणेश जी की पूजा करते समय जातक को अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखना चाहिए।
  • सर्वप्रथम आप गणपति की प्रतिमा को पुष्पों से अच्छी तरह से सजा लें।
  • पूजा करते समय में आप गुड़, तिल,फूल ताम्बे के घट में पानी, लड्डू, धुप,चन्दन प्रसाद के तौर पर केला या नारियल रख लें।
  • ध्यान रहे कि पूजा करते समय में आप देवी दुर्गा की मूर्ति भी अपने पास रखें। ऐसा करना अति शुभ माना जाता है।
  • भगवान गणेश जी को रोली लगाएं, पुष्प और जल अर्पित करें।
  • संकष्टी को प्रभु गणपति जी को मोदक और तिल के लड्डू का भोग लगाएं।
  • गणेश जी के सामने धूप-दिया जला कर कई प्रकार के मंत्र का जाप करें।
    गजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।
    उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।।
  • पूजा के पश्चात आप मूंगफली, खीर, फल, दूध या साबूदाने को छोड़कर कुछ भी न खाएँ। बहुत से व्यक्ति उपवास वाले दिन सेंधा नमक का प्रयोग करते हैं लेकिन आप सेंधा नमक नज़रअंदाज़ करने की प्रयास करें।
  • संध्याकाल चन्द्रमा उदय से पहले आप श्री गणेश जी की आराधना करें और संकष्टी व्रत कथा का पाठ करें।
  • पूजा खत्म होने के पश्चात प्रसाद बांटे। रात को चंद्रमा दर्शन के बाद उपवास खोला जाता है और इस प्रकार संकष्टी चतुर्थी का व्रत पूरा होता है।

संकष्टी चतुर्थी का महत्व

संकष्टी वाले दिन गणपति जी की पूजा-अर्चना करने से घर से नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं और शांति बनी रहती है। ऐसा भी माना जाता है कि भगवान गणपति जी घर में आ रही सारी परेशानी को दूर करते हैं और व्यक्ति की इच्छाओं को पूरा करते हैं। चाँद को देखना भी चतुर्थी के दिन अत्यधिक शुभ माना जाता है। सूर्य निकलने से शुरू होने वाला यह उपवास चाँद दिखने के बाद संपन्न होता है। पूरे वर्ष में संकष्टी चतुर्थी के 13 व्रत रखे जाते हैं। समस्त व्रत के लिए एक अलग व्रत कथा है।

संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा

संकष्टी चतुर्थी मनाने के पीछे बहुत सारे पौराणिक कथाएं हैं लेकिन उन सब में जो सर्वाधिक प्रचलित है, हम आपको वह कथा बताने जा रहे हैं।

एक बार माँ गोरी और प्रभु शंकर नदी के पास बैठे हुए थे तभी अचानक माँ गोरी ने चौपड़ खेलने की अपनी इच्छा ज़ाहिर की। लेकिन समस्या की बात यह थी कि वहां उन दोनों के अलावा तीसरा कोई नहीं था जो खेल में फैसला लेने की भूमिका निभाए। इस समस्या का समाधान निकालते हुए शंकर जी और माँ गोरी जी ने मिलकर एक मिट्टी की प्रतिमा बनाई और उसमें जान डाल दी। मिट्टी से बने बच्चे को दोनों ने यह आदेश दिया कि तुम खेल को अच्छी तरह से देखना और यह निर्णय लेना कि कौन हारा और कौन जीता। खेल आरम्भ हुआ जिसमें माँ गोरी बार-बार प्रभु शंकर को मात देकर जीत रही थीं।

खेल चलते रहा लेकिन एक बार गलती से बच्चे ने माँ गोरी को हारा हुआ घोषित कर दिया। बच्चे की इस गलती ने माँ गोरी को बहुत क्रोधित कर दिया जिसके कारण गुस्से में आकर माँ गोरी ने बालक को श्राप दे दिया और उस बालक का एक पैर टूट गया। बालक ने अपनी भूल के लिए माँ गोरी से बहुत माफ़ी मांगी । बालक के लगातार निवेदन को देख कर माँ गोरी ने कहा कि अब श्राप वापस तो कदापि नहीं हो सकता लेकिन वह इसका एक उपाय हो सकता है जिस कारण इस श्राप से मुक्ति मिल सकती है। माँ गोरी ने कहा कि संकष्टी वाले दिन पूजा करने इस स्थान पर कुछ कन्याएं आती है, तुम उन कन्याओं से व्रत की विधि ज्ञात करना और उस व्रत को सच्चे वे पवित्र मन से पालन करना।

बालक ने व्रत की विधि को जान कर पूर्ण श्रद्धा से और नियम के अनुसार से किया। उसकी सच्ची भक्ति से भगवान गणेश जी अत्यधिक प्रसन्न हुए और उस बालक की इच्छा पूछी। बालक ने माता पार्वती और भगवान शंकर के पास जाने की अपनी मनोकामना को बताया । गणेश जी ने तथास्तु कहा और उस बालक की मांग को पूरा कर दिया और उसे शिव के लोक में पहुंचा दिया, लेकिन जब वह बालक शिवलोक पहुंचा तो वहां उसे केवल भगवान शिव ही मिले। माता पार्वती भगवान शिव से नाराज़ होकर कैलाश पर्वत छोड़कर चली गयी थी। भगवान शिव ने उस बालक से पूछा की तुम यहाँ कैसे पहुच गये तो उसने उन्हें बताया कि गणेश की तपस्या से उसे यह वरदान प्राप्त हुआ है। यह जानने के बाद प्रभु शिवजी ने भी माँ पार्वती को मनाने के लिए उस व्रत को किया जिसके बाद माता पार्वती भगवान शिवशंकर से प्रसन्न हो कर वापस कैलाश पर्वत लौट आती हैं।

इस कथा के अनुसार संकष्टी के दिन भगवान गणेश जी का उपवास करने से हर व्यक्ति की सभी मनोकामना पूरी होती है।