सूर्य संक्रांति


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संक्रांति 2021 की तारीखें |

दिनांक त्यौहार
गुरुवार, 14 जनवरी मकर संक्रांति
शुक्रवार, 12 फरवरी कुम्भ संक्रांति
रविवार, 14 मार्च मीन संक्रांति
बुधवार, 14 अप्रैल मेष संक्रांति
शुक्रवार, 14 मई वृष संक्रांति
मंगलवार, 15 जून मिथुन संक्रांति
शुक्रवार, 16 जुलाई कर्क संक्रांति
मंगलवार, 17 अगस्त सिंह संक्रांति
शुक्रवार, 17 सितंबर कन्या संक्रांति
रविवार, 17 अक्टूबर तुला संक्रांति
मंगलवार, 16 नवंबर वृश्चिक संक्रांति
गुरुवार, 16 दिसंबर धनु संक्रांति

सूर्य का एक राशि से दूसरे राशि में गोचर करने को संक्रांति कहा जाता हैं। संक्रांति एक सौर घटना है। हिन्दू पंचांग के अनुसार पूरे साल में प्रायः कुल १२ संक्रान्तियाँ होती हैं और हर संक्रांति का अपना अलग-अलग महत्व और विशेषताए होती है। हिंदू धर्म में संक्रांति की तिथि एवं समय को विशेष महत्व दिया गया है

संक्रांति क्या है?

सूर्य प्रत्येक महीने अपना स्थान बदलकर एक राशि से दूसरे राशि में चला जाता है। सूर्य का प्रत्येक महीने राशि परिवर्तन करने की कार्यप्रणाली को संक्रांति के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों में संक्रांति का समय विशेष पुण्यकारी माना गया है। इस दिन दान, धर्म, स्नान और अपने पूर्वजों का श्राद्ध आदि का विशेष महत्व है। इस वैदिक उत्सव को भारत के कई छोटे-बड़े राज्यों में बहुत ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।

भारत के कुछ राज्यों जैसे तेलांगना, कर्नाटक, केरल, आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा, गुजरात, पंजाब, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में संक्रांति के दिन को वर्ष के आरम्भ के तौर पर माना जाता है। जबकि असम और बंगाल जैसे कुछ इलाको में संक्रांति के दिन को वर्ष की समाप्ति की तरह माना जाता है।

महत्वपूर्ण संक्रातियाँ

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राशियाँ १२(12) होती हैं, जिनको मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ और मीन के नाम से जाना जाता है। जैसा कि हमने ऊपर आपको बताया की विभिन्न राशियों में सूर्य के प्रवेश को ही संक्रांति की संज्ञा दी गई है। सूर्य एक के बाद एक इन १२(12) राशियों से होकर गुजरता है। वैसे तो सूर्य का इन सभी १२ राशियों से होकर गुजरना शुभ माना जाता है परन्तु हिन्दू शास्त्रों में कुछ राशियों में सूर्य के इस संक्रमण को बहुत खास मानते हैं।

कुछ महत्वपूर्ण संक्रांतियों निम्नलिखित है–

  • मकर संक्रांति– जब भगवान सूर्य संक्रांति करते समय मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इस दिन को मकर सक्रांति कहते। मकर संक्रांति भारत में मनाया जाने वाला एक लोकप्रिय और विशेष पर्व है। मकर संक्रांति त्यौहार को प्रत्येक साल जनवरी के माह में मनाया जाता है। कई जगहों पर मकर संक्रांति को उत्तरायण भी कहते हैं, उत्तरायण शब्द का अर्थ है जिस दिन सूर्य उत्तर की ओर से अपनी यात्रा शुरू करता है। मकर संक्रांति १४(14) जनवरी या कभी-कभी, १५(15) जनवरी को मनाते हैं।
  • मेष संक्रांति– पारंपरिक हिंदू सौर पंचांग में इसे नए वर्ष के आरम्भ के तौर पर माना जाता है। मेष संक्रांति के दिन मेष राशि में सूर्य देव प्रवेश करते है। यह आम तौर पर 14 या 15 को अप्रैल के महीने में मनाई जाती है। मेष संक्रांति के दिन को भारत के कई राज्यों में पर्व के रूप में मनाया जाता है। जैसे की पंजाब में बैसाखी, ओडिशा में पाना संक्रांति और एक दिन बाद मेष संक्रांति, बंगाल में पोहेला बोइशाख आदि जैसे प्रचलित नामों से जाना जाता है।
  • मिथुन संक्रांति–भारत के पूर्वी और पूर्वोत्तर प्रांतों में मिथुन संक्रांति को माता पृथ्वी के वार्षिक मासिक धर्म चरण के रूप में मनाते है, जिसे राजा पारबा या अंबुबाची मेला के नाम से जाना जाता हैं।
  • धनु संक्रांति–इस संक्रांति को हेमंत ऋतु के आरम्भ होने पर मनाते है। नेपाल और दक्षिणी भूटान में धनु संक्रांति के दिन जंगली आलू जिसे तारुल के नाम से जानते है, उसे खाने की परंपरा है। जिस दिन से हेमंत ऋतु का आरम्भ होता है उसकी पहली तिथि को लोग इस धनु संक्रांति को बड़े ही धूम-धाम और बड़े उल्लास के साथ मनाते हैं।
  • कर्क संक्रांति– आमतौर पर जुलाई के महीने में 16 तारीख के आस-पास सूर्य देव का कर्क राशि में प्रवेश करने पर कर्क संक्रांति को मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के मुताबिक इसे 6 महीने के उत्तरायण काल का अंत माना गया है और साथ ही कर्क संक्रांति के दिन से दक्षिणायन की भी शुरुआत होती है, जो मकर संक्रांति में समाप्त हो जाता है।

संक्रांति का महत्व

वैसे देखा जाये तो संक्रांति का सम्बन्ध प्रकृति, ऋतु और कृषि में बदलाव से भी है। भगवान सूर्य को प्रकृति के कारक के तौर पर भी जाना जाता है, इसी कारण संक्रांति के दिन भगवान सूर्य की आराधना की जाती है। हिन्दू धर्म में भगवान सूर्य को पुरे भौतिक और अभौतिक तत्वों की आत्मा बताया गया है। ऋतु में बदलाव और जलवायु में कुछ महत्वपूर्ण और विशेष परिवर्तन सूर्य की स्थिति में बदलाव के अनुसार होता है। न केवल ऋतु परिवर्तन बल्कि धरती से जो अन्न पैदा होता है और जिससे सभी जीव समुदाय का भरण और पोषण होता है, यह सब सूर्य देव के कारण ही संभव हो पाता है।

संक्रांति के दिन पूजा-अर्चना करने के बाद तिल और गुड़ का प्रसाद भी बांटा जाता है। जैसा कि हम जानते हैं, संक्राति का दिन शुभ और विशेष पुण्यकारी होता है। एकादशी, पूर्णिमा आदि जैसे शुभ दिनों की तरह संक्रांति के दिन की भी विशेष मान्यता है। इसी कारण संक्रांति के दिन कुछ लोग पूजा-पाठ आदि भी करते हैं। संक्रांति के व्रत का वर्णन मत्स्यपुराण में भी किया गया है।

जो भी व्यक्ति (नारी हो या पुरुष) संक्रांति पर उपवास रखना चाहता है उसे संक्रांति से एक दिन पहले केवल एक बार ही भोजन करना चाहिए। संक्रांति के दिन उसे सुबह जल्दी उठकर अपने दाँतो को अच्छे से साफ़ करके स्नान करना चाहिए। अपने स्न्नान के पानी में वर्ती तिल अवश्य मिला लें। संक्रांति के दिन दान और धर्म की विशेष मान्यता है इसीलिए स्नान पूर्ण होने के बाद ब्राह्मण को फल, अनाज आदि का दान करना चाहिए। उसके बाद वर्ती को बिना तेल वाला भोजन ग्रहण चाहिए और अपनी यथाशक्ति अनुसार गरीबो को भी भोजन देना चाहिए।

हिंदू धर्म में संक्रांति, पूर्णिमा, अमावस्या और ग्रहण जैसे दिनों पर गंगा स्नान को महापुण्यदायक माना जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने पर मनुष्य को ब्रह्मलोक प्राप्त होता है। देवीपुराण में कहा गया है की - वह व्यक्ति जो संक्रांति के पवित्र दिन पर भी स्नान नहीं करता वह व्यक्ति 7 जन्मों तक निर्धन और बीमार रहता है।