आइए जानते हैं कि 2021 में उत्तरायण कब है और उत्तरायण 2021 की तिथि व मुहूर्त। सूर्य का उत्तर दिशा की ओर गमन उत्तरायण कहलाता है। दरअसल उत्तरायण सूर्य की एक दशा है। उत्तरायण का शाब्दिक अर्थ उत्तर की ओर गमन होता है। उत्तरायण काल का आरम्भ 14 जनवरी से होता है। उत्तरायण काल के दौरान सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। इस अवसर के दिन मकर संक्रांति त्योहार मनाया जाता है। महाराष्ट्र और गुजरात में यह पर्व उत्तरायण के नाम से मनाया जाता है। यह मान्यता है कि उत्तरायण काल शुभ और अच्छे परिणाम देने वाला होता है। उत्तरायण को भगवानो का दिन कहा जाता है इसलिए इस काल में नए काम, यज्ञ, उपवास, अनुष्ठान, शादी, मुंडन जैसे काम करना शुभ माना जाता है। उत्तरायण के दिन यमुना और गंगा नदी में नहाने का विशेष महत्व है। गुजरात में उत्तरायण के मौके पर पतंग उड़ाने का उत्सव मनाया जाता है।
हिंदू धर्म में उत्तरायण काल का महत्व
हिंदू धर्म के अनुसार सूर्य का दक्षिण से उत्तर दिशा की ओर गमन करना बहुत शुभ माना गया है। यह मान्यता है कि जब सूर्य पूर्व दिशा से दक्षिण दिशा की ओर चलता है, इस दौरान सूर्य की किरणों को बुरा माना गया है, परन्तु जब सूर्य पूर्व से उत्तर की ओर गमन करने लगता है, तब सूर्य की किरणें शांति और सेहत को बढ़ाती हैं। इस दौरान सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है इसलिए इसे मकर संक्रांति भी कहा जाता है, जो कि हिंदू धर्म में एक बड़ा त्यौहार है। उत्तरायण के पश्चात मौसम और ऋतु में बदलाव होने लगता है। इसके परिणाम स्वरूप शरद ऋतु यानी सर्दियों का मौसम धीरे-धीरे खत्म होने लगता है। उत्तरायण के कारण रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। जब सूर्य उत्तरायण होता है तो यह तीर्थ और पर्वों का समय होता है।
उत्तरायण काल पर होने वाले वैदिक कर्मकांड
ग्रन्थों में उत्तरायण काल को सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है जबकि दक्षिणायन को नकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। यह मान्यता है कि उत्तरायण काल के समय किए गए काम शुभ परिणाम देने वाले होते हैं।
- उत्तरायण काल को साधुओ ने जप, तप और सिद्धि पाने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
- उत्तरायण को भगवानों का दिन माना जाता है। क्योंकि इस समय में भगवान सूर्य देवताओं का अधिपति होता है।
- मकर संक्रांति उत्तरायण काल का प्रथम दिन होता है इसलिए इस दिन स्नान, दान, और पुण्य करना शुभ फलदायी होता है।
- हर 6 महीने का समय उत्तरायण काल कहलाता है। हिन्दू माह के मुताबिक यह माघ से आषाढ़ माह तक माना जाता है।
- उत्तरायण काल में दीक्षा ग्रहण, गृह प्रवेश, शादी और यज्ञोपवीत संस्कार आदि को शुभ माना जाता है।
सूर्य के उत्तरायण काल से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं
- उत्तरायण काल के महत्व का उल्लेख ग्रंथों में भी मिलता है। हिंदू धर्म के पावन ग्रंथ श्रीमद भगवत गीता में स्वयं प्रभु श्री कृष्ण जी ने कहा है कि, उत्तरायण के 6 महीने के शुभ काल में धरती जगमगाती रहती है, इसलिए इस प्रकाश में शरीर को छोड़ देने से मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। महाभारत काल के दौरान भीष्म पितामह जिन्हें इच्छामृत्यु का वरदान मिला था। उन्होंने भी मकर संक्रांति के दिन शरीर को छोड़ दिया था।
- उत्तरायण काल के प्रथम दिन यानी मकर संक्रांति पर गंगा नहान को विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है। पौराणिक कथा के अंतर्गत महाराजा भागीरथ ने अपने पितरों के श्राद्ध के लिए सालों की तपस्या करके गंगा जी को धरती पर आने को मजबूर कर दिया था। मकर संक्रांति के दिन गंगा जी स्वर्ग से धरती लोक पर अवतरित हुईं। इसी दिन महाराजा भागीरथ ने अपने पितरों का श्राद्ध किया था और महाराजा भागीरथ के पीछे चलते-चलते गंगा जी कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए सागर में समा गई थीं।
वैदिक ज्योतिष में उत्तरायण काल का महत्व
हिंदू कैलेंडर के मुताबिक एक साल में सूर्य दो बार राशि परिवर्तन करता है और इसी बदलाव को उत्तरायण और दक्षिणायन के नाम से जाना जाता है। काल गणना के अंतर्गत जब सूर्य मकर राशि से मिथुन राशि तक संचरण करता है तो इस समय को उत्तरायण काल कहा जाता है। इसके पश्चात सूर्य कर्क राशि से धनु राशि तक भ्रमण करता है इसे दक्षिणायन काल कहा जाता है। इस तरह सूर्य के दोनों अयन 6-6 माह के होते हैं।
इसका उल्टा उत्तरायण के 6 महीने बाद अर्थात 14 जुलाई को सूर्य दक्षिणायन हो जाता है। दक्षिणायन काल में सूर्य दक्षिण दिशा की ओर झुकाव के साथ गति करने लगता है। यह भी मान्यता है कि दक्षिणायन का समय देवो की रात्रि है। दक्षिणायन में रात्रि लंबी हो जाती है। दक्षिणायन व्रत और उपवास का समय होता है। दक्षिणायन के दिन कई शुभ और मांगलिक काम को करना वर्जित होता है। सूर्य का दक्षिणायन होना भोग की वृद्धि और कामनाओं को दर्शाता है इसी कारण इस समय में किए गए काम जैसे उपवास, पूजा आदि से रोग और दुख दूर होते हैं।
हिंदू धर्म के अनुसार उत्तरायण आस्था का महापर्व है। उत्तरायण के अवसर पर स्नान, दान, धर्म और पितरों का श्राद्ध करने का बड़ा महत्व है। इस मौके पर देशभर में बहुत जगहों पर मेले भी लगते हैं। विशेष कर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और दक्षिण भारत में विशाल मेलों का आयोजन होता है। उत्तरायण के दिन लाखों भक्त गंगा और अन्य पवित्र नदियों के किनारे स्नान, दान और धर्म करते हैं। स्कंद पुराण और मत्स्य पुराण में उत्तरायण के महत्व का विशेष रूप से वर्णित है। मान्यता यह भी है कि आध्यात्मिक प्रगति और भगवान की पूजा-अर्चना के लिए उत्तरायण का समय विशेष फलदायी होता है।