वरुथिनी एकादशी का उपवास सुख और सौभाग्य का प्रतीक है। वरुथिनी एकादशी उपवास के प्रभाव से सभी पाप, ताप व दुख दूर होते हैं और असीम शक्ति मिलता है। इस भक्ति भाव से प्रभुमधुसूदन जी की आराधनाकरनी चाहिए। सूर्य ग्रहण के समय जो फल स्वर्ण दान करने से मिलता है, वही फल वरूथिनी एकादशी का व्रत करने से मिलता है। इस उपवासके प्रभाव से मनुष्य लोक और परलोक दोनों में सुख सहताहै।
वरुथिनी एकादशी व्रत पूजा विधि
इस दिन व्रती को सबसे पहले ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहिये। लोगो की बुराई और बुरे लोगों की संगत से बचना चाहिए। इस व्रत की पूजा विधि निम्न प्रकार है:
- वरुथिनी एकादशी व्रत से एक दिन पहले यानी दशमी को एक ही बार भोजन करें।
- वरुथिनी एकादशी व्रत वाले दिन सुबह स्नान के पश्चात व्रत की प्रतिज्ञा लेकर भगवान की आराधना करें।
- व्रत की दौरान में तेल से बना भोजन, दूसरे का अन्न,, चना, शहद, मसूर की दाल, कांसे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए। उपासक को सिर्फ एक ही बार भोजन करना चाहिए।
- रात्रि में भगवान का ध्यान करते हुए जागरण करें और अगले दिन द्वादशी को व्रत पूर्ण करना चाहिए।
- वरुथिनी एकादशी के दिन शास्त्र मनन और भजन-कीर्तन करना चाहिए और क्रोध करने व झूठ बोलने से बचना चाहिए।
वरुथिनी एकादशी व्रत का महत्व
वरुथिनी एकादशी व्रत अत्यंत पुण्यदायी होता है। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वरुथिनी एकादशी का व्रत ब्राह्मण को दान देने, करोड़ों वर्ष तक ध्यान करने और कन्या दान से मिलने वाले परिणाम से भी अधिक है। वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से प्रभु मधुसूदन जी की कृपा रहती है। लोगो के दुख दूर होते हैं और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।
पौराणिक कथा
एक समय अर्जुन के आग्रह करने पर भगवान श्री कृष्ण ने वरुथिनी एकादशी की कथा और उसके महत्व का वर्णन किया, जो इस प्रकार है:
प्राचीन समय में नर्मदा नदी के तट पर मांधाता नाम के एक राजा का राज्य था। वह बहुत परोपकारी और तपस्वी राजा था। एक समय जब वह जंगल में तपस्या कर रहा था। उसी समय जंगली भालू ने आकर उसका पैर चबा लिया। इसके बाद, भालू राजा को जंगल में खींच के ले गया। तब राजा घबरा गया, तपस्या धर्म का पालन करते हुए, वह क्रोधित नहीं हुआ और भगवान विष्णु से प्रार्थना की।
राजा की पुकार सुनकर प्रभु विष्णु जी वहां प्रकट हुए और चक्र से भालू को मार डाला। तब तक भालू राजा का एक पैर खा चुका था। राजा मान्धाता इससे बहुत दुखी थे। राजा की पीड़ा को देखकर भगवान विष्णु ने कहा कि - "मथुरा जाओ और मेरे वराह अवतार की पूजा करो और वरुथिनी एकादशी का व्रत करो। इसके प्रभाव के कारण, जिस हिस्से से भालू ने तुम्हें काटा है, वह हिस्सा ठीक हो जाएगा। यह पैर तुम्हारा पूर्व जन्म के अपराध के कारण है। ”भगवान विष्णु के आदेश के अनुसार, राजा ने पूरी श्रद्धा के साथ इस व्रत को किया और उसका वह हिस्सा ठीक हो गया।