हिन्दू धर्म के अनुसार एकादशी एक विशेष महत्वपूर्ण तिथि है, इसलिए विजया एकादशी का भी धार्मिक भाव से विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस पावन तिथि पर जो कोई भक्त पूर्ण विधि विधान के साथ व्रत का पालन करता है तो उस उपासक को उसके हर एक काम में सफलता और समृद्धि प्राप्त होती है।
विजया एकादशी व्रत एवं पूजा विधि
- एकादशी से एक दिन पहले एक वेदी(यज्ञ स्थल या पूजा स्थान पर बना ऊँचा चबूतरा) बनाकर उस पर सप्त धान्य रखें
- सोने, चांदी, तांबे अथवा मिट्टी आदि का कलश वेदी पर स्थापित करें
- इस दिन प्रातः स्नान कर व्रत का प्रण लें
- पंचपल्लव(पीपल, गूलर, अशोक, आम और वट के पत्ते सामूहिक रूप से पंच पल्लव के नाम से जाने जाते हैं) कलश में रखकर प्रभु विष्णु जी की मूर्ति की स्थापना करें
- धूप, दीप, चंदन, फल, फूल व तुलसी आदि से श्री हरि जी की पूजा करें
- व्रत के साथ-साथ भगवन कथा का पाठ व श्रवण करें
- रात में श्री हरि के नाम का भजन कीर्तन करते हुए ही जगराता करें
- द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन आदि करवाएं व कलश का दान करे
- उसके बाद अपने व्रत को पूर्ण करें
उपवास से पहले सात्विक भोजन का ग्रहण करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें। इस प्रकार विधिपूर्वक व्रत रखने से व्रती को कठिन से कठिन हालातों पर भी विजय प्राप्त होती है।
विजया एकादशी का महत्व
एकादशी का व्रत सभी व्रतों में सबसे प्राचीन माना जाता है। पद्म पुराण के मुताबिक स्वयं भगवान शिव जी ने नारद जी को उपदेश देते हुए कहा था कि, “एकादशी महान पुण्य देने वाली होती है”। मान्यता है कि जो व्यक्ति विजया एकादशी का उपवास विधि पूर्वक रखता है उसके पूर्वज और पितृ कुयोनि को त्याग कर स्वर्ग लोक जाते हैं। साथ ही उपासक को अपने प्रत्येक काम में सफलता मिलती है और उसे अपने पूर्व जन्म से लेकर इस जन्म के सभी पापों से भी मुक्ति मिलती है।
विजया एकादशी व्रत कथा
मान्यता है कि त्रेता युग में जब प्रभु श्री राम जी लंका पर चढ़ाई करने के लिए समुद्र के किनारे पहुँचे, तब मर्यादा पुरुषोत्तम राम जी ने समुद्र देवता से मार्ग देने का अनुरोध किया किन्तु समुद्र देव ने प्रभु श्री राम जी को लंका की ओर जाने का मार्ग नहीं दिया तब प्रभु श्री राम जी ने वकदालभ्य मुनि की आज्ञा के अनुसार विजय एकादशी का व्रत विधिवत पूर्ण किया जिसके प्रभाव से समुद्र देवता ने प्रभु श्री राम जी को मार्ग प्रदान किया। इसके साथ ही विजया एकादशी का व्रत रावण पर विजय प्रदान कराने में सहायक सिद्ध हुआ और उसी दिन से इस तिथि को विजया एकादशी के नाम से जाना जाता है।