पांच दिन दिवाली त्यौहार के महत्व - Importance of five day Diwali festival
दिवाली त्यौहार वास्त्व मे पांच दिनो तक का त्यौहार मनाया जाता है। लेकिन यह त्यौहार मुख्य तीन दिन ही महत्व मानते है। इस दिन गणेश जी और देवी लक्षमी जी की पूजा होती है। इसके आलावा पांच दिन अलग -अलग त्यौहार मनाते है। इस साल मे यह त्यौहार 12 नवम्बर से 16 नवम्बर तक का है।
- धन्तेरस त्यौहार
- नरक चतुर्दशी (छोटी दिवाली)
- दिवाली
- गोवर्धन पूजा
- भैया दूज
दिवाली का वास्तविक मे अर्थ है। दीपो की पंक्ति। जब हम दीयो को एक साथ क्रम अनुसार रखकर जलाते है। तो इसे ही दिवाली कहते है। हांलाकि अब दीये की दिवाली कम हो रही है और मोमबत्ती, झिलमिल लाइट वाली दिवाली की रौशनी हो रही है और पटाखे भी कम हो रहे है। दीपावली स्वच्छता अभियान का त्योहार है। दिवाली आने से पहले कुछ दिनो घरों की पुताई करवाई जाती है। स्नान कर नए-नए कपड़े पहने जाते हैं और साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है। इस दिन दीप जलाना, रंगोली बनाना, माता लक्ष्मी की पूजा करना, मिठाई बांटना, अच्छे-अच्छे पकवान बनाना और नई-नई वस्तुएं खरीदने का महत्व रहता है। दिवाली का त्यौहार पास आने से पहले ही घरों में पूजन की तैयारी शुरू हो जाती है। दिवाली केवल एक ही त्यौहार नहीं होता बल्कि इसके आगे और पीछे भी त्यौहार होते है। इन सबको मिला कर पांच दिन की दिवाली होती है। इन सबके अलग-अलग त्योहारों की खुशिया होती है।भारत वर्ष मे मनाया जाने वाला यह त्यौहार हिन्दुओ का एक ऐसा पर्व है। जिसके बारे मे हम सबको पता है। कि प्रभु श्री राम 14वर्ष का वनवास पूरा करके माता सीता और अपने भाई के साथ आयोध्या वापसी लोटे इसी ख़ुशी पर लोगो ने उनका स्वागत घी के दीये जलाकर किये इस अमावस्या की काली रात को चारो जगह रौशनी ही रौशनी हो गयी। अँधेरा मिट गया। उजाला हो गया यानि कि बुराई पर अच्छाई की जीत की रौशनी चारो ओर फैलने लगी। एक और यह जीवन में ज्ञान रुपी प्रकाश को लाने वाला है तो वहीं सुख-समृद्धि की कामना के लिये भी दिवाली से बढ़कर कोई त्यौहार नहीं होता इसलिये इस अवसर पर लक्ष्मी की पूजा भी की जाती है। दिवाली का त्यौहार जब आता है तो साथ मे अनेक त्यौहार लाता है। यह त्यौहार सभी धर्म के लोग मनाते है और बड़ी धूमधाम से मनाते है। माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिये इस दिन को बहुत ही शुभ माना जाता है। घर में सुख-समृद्धि बने रहे और मां लक्ष्मी स्थिर रहें इसके लिये दिनभर मां लक्ष्मी का उपवास रखने के उपरांत सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल के दौरान स्थिर लग्न (वृषभ लग्न को स्थिर लग्न माना जाता है) में मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिये। लग्न व मुहूर्त का समय स्थान के अनुसार ही देखना चाहिये।
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त :शाम 17:28 से 19:23बजे तक
प्रदोष काल:शाम 17:23 से 20:04 बजे तक
वृषभ काल :शाम 17:28 से 19:23 बजे तक
1. धन्तेरस : यह त्यौहार दिवाली का पहला त्यौहार है। इस त्यौहार मे हिन्दु लोग धन की पूजा करते है। इसे धन्तेरस कहते है। धन तेरस यह पर्व कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन कुछ नया खरीदने की रिवाज है। मान्यता है की जो इस दिन सामान खरीदते है तो घर मे और धन मे लाभ होता है इस लिए इस दिन कुछ औरते अपने लिए सोने या चाँदी का कुछ बनवाते है और बर्तन भी खीरदति है। इस दिन सब लोग दिवाली के लिए भी सामान खीरदते है और घर या काम पर यम के दीये भी जलते है। इस दिन से लक्ष्मी जी की पूजा शुरू हो जाती है। धन्वंतरि भी इसी दिन अवतरित हुए थे इसी कारण इसे धन तेरस कहा जाता है। इस दिन लक्ष्मी जी की पूजा के साथ धन्वंतरि की भी पूजा होती है। इसलिए दिवाली प्रमुख्य त्यौहार से अलग है। यह त्यौहार भारत मे सब जगह मनाते है। विशेषरूप से पीतल और चाँदी के बर्तन खरीदना चाहिए, क्योंकि पीतल महर्षि धन्वंतरी का धातु है| इससे घर में आरोग्य, सौभाग्य और स्वास्थ्य लाभ होता है| धनतेरस के दिन धन के देवता कुबेर और यमदेव की पूजा अर्चना का विशेष महत्त्व है| इस दिन को धन्वंतरि जयंती के नाम से भी जाना जाता है| धनतेरस पर दक्षिण दिशा में दिया जलाना चाहिए । इसके पिछे की कहानी यह है। कि एक दिन दूत ने बातों ही बातों में यमराज से प्रश्न किया कि अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय है? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यमदेव ने कहा कि जो प्राणी धनतेरस की शाम यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दिया जलाकर रखता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती| इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम लोग आँगन में यम देवता के नाम पर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं|फलस्वरूप उपासक और उसके परिवार को मृत्युदेव यमराज के कोप से सुरक्षा मिलती है| विशेषरूप से यदि घर की लक्ष्मी इस दिन दीपदान करें तो पूरा परिवार स्वस्थ रहता है| शाम के समय में पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है ।अगले दिन मां लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा होती है।
धन्तेरस तिथि -12 नवम्बर 2020
धन्तेरस पूजा मुर्हुत - शाम 05:25 बजे से शाम 05 :29 बजे तक
प्रदोष काल- शाम 05:25बजे से रात 08:06 बजे तक
वृषभ काल -शाम 05:25 बजे से शाम 05:29 बजे तक
2. नरक चतुर्दशी (छोटी दिवाली ) : यह त्यौहार दिवाली का दूसरा त्यौहार है। इस दिन को सजाते है।यह माना जाता है। कि इस दिन माँ काली जी ने नरसुर का वध किया था। हिन्दू धर्म के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन हम मृत्यु के देवता जिन्हें हम ‘यम’ के नाम से जानते है, की पूजा की जाती है। यह दिन दिवाली के एक दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन शाम होने के बाद दिये जलाए। नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल से मालिश कर और उपटन लगा कर पानी से स्नान कर लेना चाहिए । स्नानादि के बाद विष्णु और कृष्ण मंदिर में जाकर भगवान के दर्शन कर पूजा की जाती है। ऐसा करने से पाप तो कटते हैं साथ ही रूप सौन्दर्य में भी वृद्धि होती है। इसलिये इसे रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है। यम देवता पाप से मुक्त करते हैं इसलिये यम चतुर्दशी भी इस दिन को कहा जाता है। भगवान श्री कृष्ण ने 16 हजार एक सौ कन्याओं को मुक्त करवाकर उनसे विवाह किया था जिसके उपलक्ष्य में दियों की बारात सजाकर चतुर्दशी की अंधेरी रात को रोशन किया था इस कारण इसे छोटी दिवाली भी कहा जाता है। नरक चतुर्दशी पर किये जाने वाले स्नान को अभ्यंग स्नान कहा जाता है जो कि रूप सौंदर्य में वृद्धि करने वाला माना जाता है और इस दिन हम यमराज से आकाल मृत्यु से मुक्ति और स्वस्थ्य जीवन की कामना करते है। इस दिन व्रत रखने और भगवान शिव, माता पार्वती और श्री गणेश जी की विधिपूर्वक पूजा करने से भक्तों के सभी पापों का नाश होता है, आयु में वृद्धि होती है, नरक की यातनाओं से मुक्ति मिलती है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। नरक निवारण चतुर्दशी के दिन भगवान शिव की आराधना का विशेष महत्व माना गया है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को ही छोटी दीवाली के रुप में मनाया जाता है| इस दिन का त्यौहार विभिन स्थानों पर अपने रीति-रिवाजों से ही मनाया जाता है। भारत के भिन्न-भिन्न भागों में इसे सब अपने लोग अनुसार मनाया जाता है| शाम के समय में दीपक जलाने का चलन सभी जगहों पर समान ही है|
3. दिवाली : छोटी दिवाली के अगले दिन बड़ी दिवाली आती है। इसलिए इस त्यौहार को बड़ी धूमधाम से मनाते है ।दिवाली हिंदुओं का प्रमुख त्योहार है। हर देश के लोगो को इस त्यौहार का इंतजार रहता है। यह रोशनी और प्रकाश का त्यौहार है। इस दिन बच्चों को खाने के लिए तरह तरह की मिठाइयां मिलती हैं और पटाखे चलाने को मिलते हैं।
दिवाली के दिन भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। यह त्यौहार अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है। इस दिन घरों में दिए जलाए जाते हैं। विभिन्न प्रकार की लाइटें, रंग बिरंगी रोशनी लगाई जाती हैं और इस दिन घरो मे रंगोली बनाई जाती है। लोग नए वस्त्र पहनते हैं। शाम को मिठाइयां बांटी जाती हैं, और साथ मे प्रसाद भी बाटते है। यह अमावस्या के दिन मनाई जाती है। इस दिन पुरे भारत मे अगल सा नजारा होता है। दिवाली के दिन ही भगवान श्रीराम 14 वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या वापस लौटे थे। श्रीराम का स्वागत करने के लिए अयोध्या के लोगो ने घी के दीपक जलाए थे।
उस दिन कार्तिक महीने की अमावस्या थी। घने अंधकार में प्रकाश करने के लिए अयोध्या के लोगो ने दिए जलाए थे। तब से यह दिन हर साल सभी भारतीय प्रकाश पर्व (दीपावली) के रूप में मनाते हैं। यह त्यौहार दिखाता है कि बुराई पर सदैव अच्छाई की जीत होती है, सत्य की जीत सदैव होती है। यह त्यौहार कार्तिक मास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। इस दिन श्री राम,माता सीता के साथ १४ वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या लोटे थे। इसी की ख़ुशी मे भारत मे सब जगह दिवाली मनाते है। यह त्यौहार असत्य पर सत्य ,बुराई पर अच्छाई,अंधकार पर प्रकाश का दिखाया है।
दिवाली तिथि -14 नवम्बर 2020
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त - शाम 17:28 से19:23 बजे तक
प्रदोष काल - शाम 17:23 से 20:04 बजे तक
वृषभ काल - शाम 17:28 से 19:23 बजे तक
4. गोवर्धन पूजा : यह त्यौहार दिवाली के चौथा दिन का है। इस दिन गोवर्धन की पूजा करते है। क्योकि इस दिन श्री कृष्ण जी ने गोवर्धन पर्वत को अपनी ऊँगली पर उठा लिए थे। इस दिन सभी हिन्दुओ के लिए गाय की पूजा करते है। गोवर्धन पूजा के साथ मे हम सभी गाय की पूजा करते उसके प्रति आभार प्रकट है। यह त्यौहार कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन मनाया जाता है।
इस पूजा के साथ -साथ प्राकृतिक की भी पूजा करते है। जैसे कि हमारे जीवन मे प्रकृति के बिना पूरा नहीं हो सकता है। इस पूजां मे सभी लोग प्रकृति,पेड़ - पोधे,फूल ,पर्वत ,हवा,सूर्ये,सूर्ये कि रौशनी जैसी सभी प्राकृतिक चीजों के प्रति आभार प्रकट करते है। प्रकृति से प्राप्त सब्जिया ,दूध फल खाकर ही लोगो का जीवन चल रहा है। प्रकृति के बिना कोइ भी लोग जीवित नहीं रह सकता है। पृथ्वी ,मिटटी मे सभी खाने योग्य फसले और सब्जिया उगती है गोवर्धन पूजा करके हम सब लोग ईश्वर को धन्यवाद देते है। कि उसने हमे विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक चीजे देकर हमारा जिंदगी सवारा है।
यह त्यौहार ज्यादातर किसान मानते है। क्योंकि जीविका के लिए वो प्रकृति पर सबसे अधिक निर्भर रहते हैं। इस पूजा में सभी लोग सुबह उठकर स्नान करते हैं। घर की रसोई में ताजे पकवान बनाए जाते हैं। गोबर और मिट्टी को मिलाकर गाय, गोवर्धन पर्वत, श्रीकृष्ण, खेत के औजारों की मूर्ति बनाई जाती है। सभी की पूजा की जाती है।
इस दिन भगवान कृष्ण की भी पूजा की जाती है। पूजा के बाद पूरा परिवार एक साथ भोजन ग्रहण करता है। मथुरा के निवासी इस दिन गोवर्धन पर्वत की सात परिक्रमा करते हैं। इस पूजा में दूध, दही, गंगाजल, शहद, बताशे प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है और फिर भक्तों में बांटा जाता है।
5. भैया दूज : भाई दूज या भैया दूज का त्यौहार कार्तिक शुक्ल पश्च कि द्वितीय को मनाया जाता है। इस पर्व को यम द्वितीय भी कहते है। यह त्यौहार नए चंद्रमा के बाद दूसरे दिन आता है। यह वह दिन होता है जिस दिन बहन, भाई के लंबे जीवन के लिए प्रार्थना करती है। यह त्यौहार भाई -बहन के बीच प्रेम को दर्शाता है। यह त्यौहार भी रक्षाबंधन जैसा होता है। इस दिन भाई बहन का गठबंधन कर यमुना नदी में स्नान कराते हैं। बहन भाई के माथे पर तिलक लगाती है और कामना करती है कि वह सदैव दुखों और कष्टों से दूर रहे। भाई अपनी बहन को पैसा या अन्य कोई उपहार देता है।
यह त्यौहार भाई बहनो के बीच प्रेम को मजबूत करने के लिए यह भैया दूज का त्यौहार मनाते है। यह एक दिन है जो भाई- बहन के साथ खाना खाते है और उपहार देते है और जो सुहागन महिलाए के लिए यह दिन स्पेशल होता है। क्योकि भाई उनके घर जाता है और अपने साथ उपहार भी ले जाते है जिससे बहन देखकर खुश हो जाती है। बहने भी अपने भाई के लंबे जीवन और अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करती है।सुबह उठकर स्नान कर तैयार हो जाए। सबसे पहले बहन -भाई दोनों मिलकर यम, चित्रगुप्त और यम के दूतो कि पूजा करे और सबको जल चढ़ाए दे। इसके बाद बहन अपने भाई को घी और चावल का टिका लगती है। फिर भाई कि हथेली पर सिंदूर, पान, सुपारी और सूखा नारियल यानि गोला भी है। फिर भाई के हाथ पर कलावा बांधती है और उनके मुँह मीठा करवाती है।
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